Donald Trump vs Kamala Harris

Donald Trump vs Kamala Harris – इलेक्टोरल वोट जीतने के बाद भी पॉपुलर वोट पलट देते हैं US चुनाव के नतीजे, 10 सवाल-जवाब से समझें आगे का रास्ता

Table of Contents

Donald Trump vs Kamala Harris – इलेक्टोरल वोट जीतने के बाद भी पॉपुलर वोट पलट देते हैं US चुनाव के नतीजे, 10 सवाल-जवाब से समझें आगे का रास्ता

अमेरिकी राष्ट्रपति का चुनाव एक विशेष प्रणाली, इलेक्टोरल कॉलेज सिस्टम के तहत होता है, न कि जनता के सीधे वोट यानी पॉपुलर वोट के आधार पर। इस प्रणाली में पॉपुलर वोट और इलेक्टोरल वोट दो अलग-अलग महत्व रखते हैं। पॉपुलर वोट का अर्थ है कि जनता सीधे अपने उम्मीदवार के लिए वोट करती है, जबकि इलेक्टोरल वोट्स का निर्धारण राज्यों के प्रतिनिधियों के द्वारा होता है। अंततः वही प्रतिनिधि राष्ट्रपति का चुनाव करते हैं। यही कारण है कि पॉपुलर वोट में सबसे ज्यादा वोट पाने वाला उम्मीदवार भी राष्ट्रपति नहीं बन सकता है अगर उसे आवश्यक इलेक्टोरल वोट प्राप्त न हों।

अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के लिए जनता की पसंद का संकेत पॉपुलर वोट से मिलता है, परंतु अंतिम निर्णय इलेक्टोरल वोट्स से ही होता है। उदाहरण के तौर पर, जब रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप और डेमोक्रेट उम्मीदवार कमला हैरिस के बीच मुकाबला हुआ था, तो दोनों उम्मीदवारों ने जनता से पॉपुलर वोट्स प्राप्त किए, लेकिन राष्ट्रपति के चयन के लिए इलेक्टोरल वोट्स की गिनती पर जोर दिया गया। आइए विस्तार से समझते हैं कि यह इलेक्टोरल कॉलेज सिस्टम कैसे काम करता है, और क्यों पॉपुलर वोट जीतने के बाद भी उम्मीदवार को राष्ट्रपति बनने के लिए आवश्यक इलेक्टोरल वोट हासिल करना जरूरी है।

  1. अमेरिका में चुनाव प्रणाली कैसे काम करती है?

अमेरिकी चुनाव प्रणाली में प्रत्येक राज्य के वोटों की गिनती की जाती है। इसके तहत सबसे पहले सभी मतदाताओं के पॉपुलर वोट की गिनती होती है, जिससे यह तय होता है कि किस राज्य में किस उम्मीदवार को जनता का समर्थन मिला है। फिर उस राज्य के इलेक्टोरल वोट्स को जीतने वाले उम्मीदवार को सौंपा जाता है। यहां एक महत्वपूर्ण बात यह है कि अधिकांश अमेरिकी राज्यों में “विनर-टेक्स-ऑल” का नियम लागू होता है, अर्थात जिस उम्मीदवार को उस राज्य में पॉपुलर वोट में सबसे अधिक वोट मिलते हैं, उसे राज्य के सभी इलेक्टोरल वोट्स प्राप्त होते हैं। इस तरह पॉपुलर वोट के आधार पर राज्य अपने-अपने इलेक्टोरल वोट्स को निर्धारित करते हैं।

दिसंबर में एक औपचारिक बैठक होती है जिसमें हर राज्य के चुने गए इलेक्टर्स अपनी राज्य की राजधानी में मिलकर राष्ट्रपति के लिए औपचारिक रूप से मतदान करते हैं। इस प्रक्रिया को इलेक्टोरल कॉलेज की बैठक कहा जाता है। हालांकि, अधिकतर बार यह बैठक औपचारिकता मात्र होती है, क्योंकि यह पहले ही तय हो चुका होता है कि कौन-सा उम्मीदवार पॉपुलर वोट्स के आधार पर अधिक इलेक्टोरल वोट्स जीतने में कामयाब रहा है।

  1. स्विंग स्टेट्स का महत्त्व

अमेरिका में कुछ राज्य, जिन्हें स्विंग स्टेट्स कहा जाता है, राष्ट्रपति के चुनाव के परिणाम में बड़ी भूमिका निभाते हैं। स्विंग स्टेट्स वे राज्य होते हैं, जो किसी विशेष पार्टी का स्थाई समर्थन नहीं करते और हर चुनाव में उनके परिणाम अलग हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, नेवादा, एरिजोना, नॉर्थ कैरोलिना, जॉर्जिया, विस्कॉन्सिन, मिशिगन, और पेंसिल्वेनिया जैसे राज्य स्विंग स्टेट्स माने जाते हैं। इन राज्यों के इलेक्टोरल वोट्स का महत्व इसलिए अधिक होता है क्योंकि ये चुनाव के अंतिम परिणाम को प्रभावित कर सकते हैं। इन राज्यों में प्रत्येक उम्मीदवार का अधिक ध्यान रहता है क्योंकि स्विंग स्टेट्स के इलेक्टोरल वोट्स को जीतने से उम्मीदवार का राष्ट्रपति बनने का मार्ग प्रशस्त हो सकता है।

  1. इलेक्टोरल कॉलेज का महत्व और प्रक्रिया

इलेक्टोरल कॉलेज अमेरिका में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चुनाव करने वाली संस्था है। इसके तहत मतदाताओं द्वारा दिए गए वोट सीधे उम्मीदवार को नहीं जाते, बल्कि प्रत्येक राज्य के चुने हुए प्रतिनिधियों यानी इलेक्टर्स को दिए जाते हैं। इन इलेक्टर्स के माध्यम से ही राष्ट्रपति चुना जाता है। इलेक्टोरल कॉलेज में कुल 538 इलेक्टर्स होते हैं, जिसमें 435 हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स के सदस्य, 100 सीनेट के सदस्य और वॉशिंगटन डीसी के 3 इलेक्टर्स शामिल होते हैं। प्रत्येक राज्य के इलेक्टर्स की संख्या उस राज्य की जनसंख्या पर आधारित होती है और इसे हर दस साल में जनगणना के आधार पर बदला जा सकता है।

  1. इलेक्टोरल वोट्स का निर्धारण

अमेरिका में कुल 50 राज्य हैं, और हर राज्य को उसकी जनसंख्या के अनुसार इलेक्टोरल वोट्स मिलते हैं। इलेक्टोरल कॉलेज में कुल 538 वोट होते हैं और राष्ट्रपति बनने के लिए 270 इलेक्टोरल वोट्स की आवश्यकता होती है। चुनाव के दिन मतदाता अपने-अपने राज्य में इलेक्टर्स को वोट देते हैं, और इन इलेक्टर्स का चयन इस आधार पर होता है कि वह मतदाता के पसंदीदा उम्मीदवार का प्रतिनिधित्व करेगा। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि पॉपुलर वोट जीतने वाले उम्मीदवार के इलेक्टर्स ही उसके पक्ष में इलेक्टोरल वोट डालेंगे। इस प्रकार, पॉपुलर वोट्स का चुनावी प्रक्रिया में एक अहम योगदान होता है लेकिन इसका अंतिम निर्णय इलेक्टोरल वोट्स से ही होता है।

  1. इलेक्टोरल कॉलेज वोट्स का विभाजन

प्रत्येक राज्य को उसकी जनसंख्या के आधार पर एक निश्चित संख्या में इलेक्टोरल कॉलेज वोट्स दिए जाते हैं। अमेरिका की 50 राज्यों की कुल 538 इलेक्टोरल वोट्स में से, जिसे भी 270 वोट मिलते हैं, वह राष्ट्रपति पद पर आसीन हो जाता है। उदाहरण के लिए, फ्लोरिडा, टेक्सास, और कैलिफोर्निया जैसे बड़े राज्यों में अधिक इलेक्टोरल वोट्स होते हैं, जबकि छोटे राज्यों जैसे अलास्का और वरमोंट में बहुत कम वोट्स होते हैं। इस तरह के विभाजन का अर्थ यह होता है कि बड़े राज्यों में जीतने से उम्मीदवार को अधिक इलेक्टोरल वोट्स प्राप्त होते हैं, जो उसकी जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

  1. क्या पॉपुलर वोट्स के नतीजे बदल सकते हैं इलेक्टोरल वोट्स?

पॉपुलर वोट का परिणाम सीधे इलेक्टोरल वोट्स पर असर डालता है, परंतु यह जरूरी नहीं है कि पॉपुलर वोट जीतने वाला उम्मीदवार ही राष्ट्रपति बने। पिछले कुछ चुनावों में देखा गया है कि कुछ उम्मीदवारों ने पॉपुलर वोट्स में बहुमत प्राप्त किया, लेकिन उन्हें इलेक्टोरल वोट्स में बहुमत नहीं मिला, जिससे वह राष्ट्रपति नहीं बन सके। इसी कारण पॉपुलर वोट और इलेक्टोरल वोट के बीच का अंतर महत्वपूर्ण हो जाता है और यह अमेरिकी चुनाव प्रणाली की विशेषता भी है।

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में जीत-हार कैसे होती है निर्णायक

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में नतीजे काफी हद तक इलेक्टोरल कॉलेज प्रणाली पर निर्भर करते हैं। इस प्रणाली में पॉपुलर वोट का महत्व कम होता है, जबकि इलेक्टोरल वोट से ही तय होता है कि अगला राष्ट्रपति कौन बनेगा। पॉपुलर वोट यह दर्शाता है कि जनता ने किस उम्मीदवार को कितना समर्थन दिया है, लेकिन इसके बावजूद यदि किसी उम्मीदवार को इलेक्टोरल कॉलेज में ज्यादा वोट मिलते हैं, तो वह चुनाव जीत सकता है। ऐसा कई बार हुआ है, जब किसी उम्मीदवार ने पॉपुलर वोट में कम समर्थन मिलने के बावजूद इलेक्टोरल वोट से जीत हासिल कर ली।

उदाहरण के लिए, वर्ष 2016 में डोनाल्ड ट्रंप ने हिलेरी क्लिंटन के मुकाबले पॉपुलर वोट में कम वोट प्राप्त किए थे, लेकिन इलेक्टोरल वोट की वजह से वह जीत गए और राष्ट्रपति बने। इसी प्रकार 2000 के चुनाव में जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने पॉपुलर वोट में हारने के बावजूद इलेक्टोरल वोटों के बल पर अल गोर को हराया और राष्ट्रपति बने।

2016 में हिलेरी क्लिंटन ने लगभग तीन मिलियन अधिक पॉपुलर वोट हासिल किए थे, लेकिन ट्रंप ने महत्वपूर्ण इलेक्टोरल कॉलेज वोट वाले राज्यों जैसे टेक्सास, फ्लोरिडा, और पेंसिल्वेनिया में जीत हासिल की, जिससे उनकी राह आसान हो गई। इन राज्यों के इलेक्टोरल वोट्स से ट्रंप को 306 वोट प्राप्त हुए और उन्हें राष्ट्रपति घोषित कर दिया गया।

भारत की चुनाव प्रणाली से अमेरिकी प्रणाली कितनी अलग?

अमेरिका का चुनावी प्रणाली भारत की चुनाव प्रणाली से बहुत अलग है। अमेरिका में राष्ट्रपति का चुनाव एक अप्रत्यक्ष प्रणाली से किया जाता है जिसे इलेक्टोरल कॉलेज कहते हैं। भारत में लोग सीधे अपने प्रतिनिधि चुनते हैं, जो फिर प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री को चुनते हैं। वहीं, अमेरिका में पॉपुलर वोट जीतने से उम्मीदवार राष्ट्रपति नहीं बनता, बल्कि इसके लिए इलेक्टोरल वोट की आवश्यकता होती है।

अमेरिकी इतिहास में ऐसे पांच राष्ट्रपति रह चुके हैं जिन्होंने पॉपुलर वोट जीतने के बिना भी राष्ट्रपति चुनाव जीत लिया था। इस प्रणाली के कारण कम पॉपुलर वोट पाने वाला उम्मीदवार भी राष्ट्रपति बन सकता है, क्योंकि इलेक्टोरल वोट ही निर्णायक होते हैं।

विनर-टेक्स-ऑल सिस्टम का क्या महत्व है?

अमेरिकी चुनाव प्रणाली में अधिकांश राज्यों में ‘विनर-टेक्स-ऑल’ प्रणाली लागू होती है, जिसमें राज्य का पॉपुलर वोट जीतने वाला उम्मीदवार सभी इलेक्टोरल वोट्स भी हासिल कर लेता है। केवल मेन और नेब्रास्का में यह प्रणाली अलग है, जहाँ पॉपुलर वोट के अनुसार इलेक्टोरल वोट्स का बंटवारा किया जाता है।

उदाहरण के लिए, 2020 के चुनाव में जो बाइडेन ने कैलिफोर्निया में जीत दर्ज की और इसके कारण उन्हें राज्य के सभी 55 इलेक्टोरल वोट मिल गए, भले ही ट्रंप ने वहां लाखों वोट प्राप्त किए थे। इसका अर्थ है कि एक राज्य में सबसे ज्यादा वोट पाने वाला उम्मीदवार उस राज्य के सभी इलेक्टोरल वोट्स को हासिल करता है।

स्विंग स्टेट्स और बैटलग्राउंड स्टेट्स का महत्व

अमेरिकी चुनाव में ‘स्विंग स्टेट्स’ या ‘बैटलग्राउंड स्टेट्स’ का बहुत महत्व है। ये वे राज्य हैं जहाँ चुनावी नतीजे अक्सर बदलते रहते हैं और किसी भी उम्मीदवार की जीत-हार तय करने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। इस बार के चुनाव में पेंसिल्वेनिया, नेवादा, नॉर्थ कैरोलिना, जॉर्जिया, एरिजोना, मिशिगन और विस्कॉन्सिन जैसे राज्यों को स्विंग स्टेट माना गया था।

इन राज्यों में दोनों प्रमुख उम्मीदवार पूरी शक्ति और संसाधनों के साथ प्रचार करते हैं। इन स्विंग स्टेट्स में जो भी उम्मीदवार जीत दर्ज करता है, उसे इलेक्टोरल वोट्स का बड़ा हिस्सा प्राप्त होता है, जिससे राष्ट्रपति बनने की संभावना बढ़ जाती है।

चुनाव के बाद की प्रक्रिया और इलेक्टोरल कॉलेज की भूमिका

अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के बाद इलेक्टोरल कॉलेज के सभी प्रतिनिधि, जिन्हें इलेक्ट्रर्स कहा जाता है, दिसंबर महीने में अपने-अपने राज्यों की राजधानी में इकट्ठा होते हैं और औपचारिक रूप से राष्ट्रपति के लिए वोट डालते हैं। ये इलेक्ट्रर्स वह उम्मीदवार चुनते हैं जिसने उनके राज्य का पॉपुलर वोट जीता हो। कुछ राज्यों में इलेक्ट्रर्स पर कानूनन बाध्यता होती है कि वे उसी उम्मीदवार को वोट दें जो राज्य में पॉपुलर वोट से जीता हो, जबकि अन्य राज्यों में यह अनिवार्य नहीं होता।

अमेरिका में राष्ट्रपति बनने के लिए कुल 538 में से 270 इलेक्टोरल वोट हासिल करना आवश्यक है। इसी के आधार पर यह तय होता है कि अगला राष्ट्रपति कौन बनेगा।

इलेक्ट्रर्स का मतपत्र और प्रक्रिया

राष्ट्रपति चुनाव के बाद इलेक्ट्रोरल कॉलेज के सदस्य (इलेक्ट्रर्स) अपने-अपने राज्यों में मतदान करते हैं। यह मतदान औपचारिक रूप से प्रमाणित किया जाता है और फिर सुरक्षित तरीके से संघीय सरकार को भेजा जाता है। इसके बाद, इन वोटों को अमेरिकी कांग्रेस को भेजा जाता है और एक प्रति राष्ट्रीय अभिलेखागार (National Archives) में भेजी जाती है।

कांग्रेस द्वारा इन वोटों की गिनती के बाद 6 जनवरी 2025 को विजेता का नाम घोषित किया जाएगा। इसके बाद, 20 जनवरी को नए राष्ट्रपति को शपथ दिलाई जाएगी।

फेथलेस इलेक्ट्रर्स: अपवाद की स्थिति

कभी-कभी ऐसा होता है जब कुछ इलेक्ट्रर्स उस उम्मीदवार के पक्ष में वोट नहीं डालते, जिनके लिए उन्हें चुना गया था। ऐसे इलेक्ट्रर्स को ‘फेथलेस इलेक्ट्रर्स’ कहा जाता है। कुछ राज्यों में इन फेथलेस इलेक्ट्रर्स पर जुर्माना लगाया जा सकता है, जबकि कुछ राज्यों में उनके वोट को अस्वीकार भी किया जा सकता है। हालांकि, यह स्थिति बहुत कम होती है और आम तौर पर इसका चुनाव के परिणाम पर कोई बड़ा असर नहीं पड़ता।

चुनाव प्रक्रिया की सरल व्याख्या

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया को अगर सरल भाषा में समझें तो सबसे पहले, वोटर्स अपने राज्य में मतदान करते हैं। चूंकि चुनाव प्रणाली इलेक्टोरल कॉलेज पर आधारित है, हर राज्य को उसकी जनसंख्या के आधार पर एक निश्चित संख्या में इलेक्टोरल वोट मिलते हैं। राज्य में जीतने वाला प्रत्याशी उस राज्य के सभी इलेक्टोरल वोट प्राप्त करता है, हालांकि कुछ अपवादों को छोड़कर।

इसके बाद, राज्यों में मतदान के बाद पॉपुलर वोट (मतदाता का सीधा वोट) की गिनती की जाती है। यह इस बात का निर्धारण करता है कि किस प्रत्याशी को कितने वोट मिले हैं। फिर अंत में, प्रत्येक राज्य का विजेता प्रत्याशी अपने राज्य के सभी इलेक्टोरल वोट प्राप्त करता है। अधिकांश राज्यों में ‘विनर-टेक्स-ऑल’ प्रणाली लागू होती है, जिसमें राज्य के सभी इलेक्टोरल वोट एक ही उम्मीदवार को मिलते हैं।

चुनाव के बाद, दिसंबर में हर राज्य के प्रतिनिधि जो पहले से चुने जाते हैं, मिलकर इलेक्टोरल वोट डालते हैं। ये प्रतिनिधि उस राज्य के मतदाताओं की इच्छा के अनुसार वोट डालते हैं।

कांग्रेस की भूमिका और अंतिम चुनावी प्रक्रिया

जनवरी की शुरुआत में, अमेरिकी कांग्रेस औपचारिक रूप से सभी इलेक्टोरल वोटों की गिनती करती है। यह प्रक्रिया संसद के संयुक्त सत्र में होती है, जहां इलेक्टोरल कॉलेज के मतों की गिनती की जाती है। अगर किसी उम्मीदवार को 538 में से 270 या उससे ज्यादा इलेक्टोरल वोट मिलते हैं, तो उसे राष्ट्रपति चुना जाता है। यदि कोई उम्मीदवार 270 से ज्यादा वोट प्राप्त नहीं करता है, तो राष्ट्रपति का चुनाव प्रतिनिधि सभा (House of Representatives) द्वारा किया जाता है।

अमेरिका में प्रत्येक राज्य का इलेक्टोरल वोट

अमेरिका में हर राज्य को उसकी जनसंख्या के आधार पर एक निश्चित संख्या में इलेक्टोरल वोट मिलते हैं। इस तरह, प्रत्येक राज्य का चुनावी वोटों की संख्या अलग-अलग होती है। नीचे कुछ प्रमुख राज्यों और उनके चुनावी वोटों की सूची दी गई है:

  • अलाबामा: 9
  • अलास्का: 3
  • एरिज़ोना: 11
  • अर्कांसस: 6
  • कैलिफोर्निया: 54
  • कोलोराडो: 10
  • कनेक्टिकट: 7
  • डेलावेयर: 3
  • कोलंबिया के जिला: 3
  • फ्लोरिडा: 30
  • जॉर्जिया: 16
  • हवाई: 4
  • इडाहो: 4
  • इलिनोइस: 19
  • इंडियाना: 11
  • आयोवा: 6
  • कान्सास: 6
  • केंटकी: 8
  • लुइसियाना: 8
  • मेन: 4
  • मैरीलैंड: 10
  • मैसाचुसेट्स: 11
  • मिशिगन: 15
  • मिनेसोटा: 10
  • मिसिसिपी: 6
  • मिसौरी: 10
  • मोंटाना: 4
  • नेब्रास्का: 5
  • नेवादा: 6
  • न्यू हैम्पशायर: 4
  • न्यू जर्सी: 14
  • न्यू मैक्सिको: 5
  • न्यूयॉर्क: 28
  • उत्तरी कैरोलिना: 16
  • नॉर्थ डकोटा: 3
  • ओहियो: 17
  • ओकलाहोमा: 7
  • ओरेगन: 8
  • पेंसिल्वेनिया: 19
  • रोड आइलैंड: 4
  • दक्षिण कैरोलिना: 9
  • दक्षिणी डकोटा: 3
  • टेनेसी: 11
  • टेक्सास: 40
  • यूटा: 6
  • वर्मोंट: 3
  • वर्जीनिया: 13
  • वाशिंगटन: 12
  • वेस्ट वर्जीनिया: 4
  • विस्कॉन्सिन: 10
  • व्योमिंग: 3

इस प्रकार, हर राज्य का चुनावी वोटों का योगदान अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, और अंतिम चुनावी परिणाम इन इलेक्टोरल वोटों के आधार पर तय होते हैं।

Thanks for visiting – Chandigarh News

Summary
Donald Trump vs Kamala Harris - इलेक्टोरल वोट जीतने के बाद भी पॉपुलर वोट पलट देते हैं US चुनाव के नतीजे, 10 सवाल-जवाब से समझें आगे का रास्ता
Article Name
Donald Trump vs Kamala Harris - इलेक्टोरल वोट जीतने के बाद भी पॉपुलर वोट पलट देते हैं US चुनाव के नतीजे, 10 सवाल-जवाब से समझें आगे का रास्ता
Description
Donald Trump vs Kamala Harris - इलेक्टोरल वोट जीतने के बाद भी पॉपुलर वोट पलट देते हैं US चुनाव के नतीजे, 10 सवाल-जवाब से समझें आगे का रास्ता
Author
Publisher Name
Chandigarh News
Publisher Logo

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *