America India Relations – डोनाल्ड ट्रंप की वो नीतियां, जिनसे भारत की बढ़ सकती है परेशानी
डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर अमेरिकी चुनाव में जीत दर्ज कर ली है और अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं। उनके दोबारा चुने जाने के बाद यह चर्चा बढ़ गई है कि उनकी विदेश नीति कैसी होगी और भारत पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा। खासकर, दक्षिण एशिया के देशों के साथ ट्रंप किस तरह से पेश आएंगे और भारत को इससे किन संभावित चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है।
ट्रंप की विदेश नीति का भारत पर संभावित प्रभाव
दक्षिण एशिया में भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, भूटान, नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश और मालदीव जैसे देश आते हैं। विश्व बैंक के अनुसार, इस क्षेत्र में करीब 1.94 अरब लोग रहते हैं। भारत यहां एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था है और अब यह दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। दक्षिण एशिया के साथ संबंधों पर ट्रंप की नीति भारत के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इस क्षेत्र में अमेरिका का रुख भारत के आर्थिक और सामरिक हितों को प्रभावित कर सकता है।
हालांकि ट्रंप के चुनावी अभियान में दक्षिण एशिया का स्पष्ट रूप से जिक्र नहीं किया गया है। उनके बयानों में ज्यादा जोर अवैध प्रवासियों को रोकने, महंगाई को नियंत्रित करने, अमेरिकी नौकरियों को देश में बनाए रखने, और चीन को काबू में रखने पर रहा है। इसके अलावा, उन्होंने यूक्रेन और गाजा में जारी संघर्षों पर भी विराम लगाने की बात की है। लेकिन दक्षिण एशिया को लेकर उनकी नीति अस्पष्ट है, जो भारत के लिए चिंताजनक हो सकती है।
ट्रंप का दूसरा कार्यकाल: नीतियों में संभावित बदलाव
भारत के राजनयिक रहे राजीव डोगरा का मानना है कि ट्रंप की नीतियों का केंद्र बिंदु ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ का नारा है। इस नारे के तहत ट्रंप अगर किसी भी देश पर टैरिफ लगाने या अन्य कठोर कदम उठाने की आवश्यकता महसूस करेंगे तो वे पीछे नहीं हटेंगे। उनके कार्यकाल में ‘अमेरिका फर्स्ट’ की नीति सबसे प्रमुख थी और इस बार भी ऐसा ही रहने की संभावना है।
डोगरा के अनुसार, ट्रंप शक्ति और ताकतवर नेताओं की ओर आकर्षित होते हैं। उदाहरण के लिए, ट्रंप ने उत्तर कोरिया के शासक किम जोंग-उन से भी दोस्ती का हाथ बढ़ाया था। ऐसे में यह देखा जा सकता है कि ट्रंप अपनी विदेश नीति में ऐसे नेताओं के साथ संबंध मजबूत करना चाहेंगे, जो सामरिक दृष्टिकोण से ताकतवर हों। हालांकि, इससे भारत के लिए कुछ समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं, विशेषकर अगर ट्रंप चीन के साथ किसी प्रकार का नया समीकरण बनाते हैं।
भारत-अमेरिका रक्षा संबंध और ट्रंप की भूमिका
ट्रंप के पहले कार्यकाल में भारत-अमेरिका के रक्षा संबंधों में कई अहम प्रगति हुई थी। इनमें से एक प्रमुख कदम था क्वॉड समूह को फिर से सक्रिय करना। इस समूह में भारत के अलावा अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान भी शामिल हैं। कई विशेषज्ञ इस समूह को चीन के खिलाफ एक रणनीतिक मोर्चे के रूप में देखते हैं। वाइस एडमिरल गिरीश लूथरा (सेवानिवृत्त) के अनुसार, जब 2020 में भारत और चीन के सैनिक पूर्वी लद्दाख में आमने-सामने थे, तब अमेरिका ने भारत को चीन से निपटने में सहायता देने की बात की थी और उस समय ट्रंप ही अमेरिका के राष्ट्रपति थे।
लूथरा का मानना है कि ट्रंप के पहले कार्यकाल में जो स्थिरता भारत-अमेरिका संबंधों में आई थी, वह ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में भी बरकरार रह सकती है। लेकिन इस बार कुछ बदलाव और नई चुनौतियाँ सामने आ सकती हैं। लूथरा का कहना है कि हमें ट्रंप के पहले कार्यकाल की नीतियों को उनके दूसरे कार्यकाल से जोड़कर देखने में सावधानी बरतनी चाहिए, क्योंकि अब वैश्विक हालात बदल चुके हैं।
बदलती वैश्विक स्थितियाँ और ट्रंप का रुख
ट्रंप के पहले कार्यकाल की तुलना में अब दुनिया का माहौल काफी अलग है। उनके चुनाव हारने के बाद से वैश्विक स्तर पर कई घटनाएँ घटी हैं जो अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर गहरा प्रभाव डाल रही हैं। वर्तमान में इजराइल गाजा समेत कई मोर्चों पर संघर्ष कर रहा है, रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध अभी भी जारी है। इसके साथ ही, ग्लोबल साउथ की आवाज़ पहले से अधिक मुखर हुई है और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का दायरा भी बढ़ता जा रहा है।
इन सभी स्थितियों को देखते हुए, ट्रंप की नीतियों का भारत पर किस प्रकार का प्रभाव पड़ेगा, यह कहना अभी मुश्किल है। भारत के लिए यह जरूरी है कि वह ट्रंप की विदेश नीति पर बारीकी से नजर रखे, ताकि भारत अपने हितों की रक्षा के लिए आवश्यक कदम उठा सके। यदि ट्रंप का रुख पहले जैसा ही रहेगा, तो भारत-अमेरिका संबंधों में कोई बड़ा बदलाव शायद न दिखे, लेकिन अगर उनकी नीतियों में नया मोड़ आता है, तो भारत को इसके लिए तैयार रहना होगा।
भारत के लिए संभावित चुनौतियाँ
चीन के साथ संबंध: ट्रंप ने हमेशा चीन को लेकर सख्त रुख अपनाया है। अगर वे चीन पर और अधिक दबाव बनाने का प्रयास करेंगे, तो इसका असर भारत पर भी पड़ सकता है। चीन और भारत के बीच विवादित सीमाएँ और क्षेत्रीय तनाव पहले से ही हैं। अगर अमेरिका ने चीन के खिलाफ कुछ कठोर कदम उठाए, तो इससे भारत के लिए नई चुनौतियाँ पैदा हो सकती हैं।
अंतरराष्ट्रीय व्यापार और टैरिफ: ट्रंप का मुख्य फोकस ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति पर होता है। ऐसे में वे अंतरराष्ट्रीय व्यापार में टैरिफ बढ़ाने जैसे कदम उठा सकते हैं, जिसका सीधा असर भारतीय व्यापार और निर्यात पर पड़ सकता है। यदि अमेरिका ने भारतीय उत्पादों पर अधिक टैरिफ लगाया, तो इससे भारतीय अर्थव्यवस्था प्रभावित हो सकती है।
अमेरिकी वीज़ा नीतियाँ: ट्रंप के पहले कार्यकाल में उन्होंने अमेरिकी वीज़ा नीतियों को सख्त किया था, जिससे भारतीय पेशेवरों पर असर पड़ा था। अगर वे इस बार भी ऐसी ही नीति अपनाते हैं, तो इससे भारतीय आईटी पेशेवरों और अन्य क्षेत्रों के लोगों के लिए अमेरिका में काम करना मुश्किल हो सकता है। यह भारत के आईटी सेक्टर के लिए चिंता का विषय हो सकता है।
रूस-यूक्रेन और इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष: ट्रंप का रुख रूस-यूक्रेन और इजराइल-फिलिस्तीन संघर्षों पर भी महत्वपूर्ण हो सकता है। इन दोनों संघर्षों का वैश्विक राजनीति पर असर पड़ रहा है और भारत के लिए मध्य-पूर्व तथा रूस के साथ संबंध महत्वपूर्ण हैं। ट्रंप का इन मुद्दों पर कोई भी बड़ा फैसला भारत को नई स्थिति में डाल सकता है।
निष्कर्ष
डोनाल्ड ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में भारत के सामने कई चुनौतियाँ और अवसर होंगे। भारत के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह ट्रंप की विदेश नीति को ध्यान से समझे और अपने हितों को संरक्षित रखने के लिए उचित रणनीति अपनाए। ट्रंप की नीतियों के चलते वैश्विक राजनीति में अस्थिरता आ सकती है और इसके लिए भारत को सावधान रहना होगा।
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