Ban on Kumbh Mela Story – 1942 में प्रयाग पर बम गिरने के डर से अंग्रेजों ने क्यों लगाया था प्रतिबंध, जानिए इतिहास
Ban on Kumbh Mela Story – भारत का महाकुंभ एक ऐसा धार्मिक आयोजन है, जो प्राचीन काल से चला आ रहा है। यह आयोजन लाखों श्रद्धालुओं के लिए आस्था और धार्मिक भावना का केंद्र बनता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि 1942 में अंग्रेजों ने इस महान धार्मिक आयोजन पर प्रतिबंध लगा दिया था?
इसके पीछे कई राजनीतिक और सैन्य कारण थे, जो उस समय की वैश्विक और राष्ट्रीय परिस्थितियों से जुड़े थे। आइए जानते हैं उस ऐतिहासिक घटना का कारण और इसके पीछे की कहानी।
द्वितीय विश्व युद्ध का प्रभाव
1942 में जब दुनिया द्वितीय विश्व युद्ध की चपेट में थी, तब भारत भी ब्रिटिश साम्राज्य के तहत था। जापान ने दक्षिण-पूर्व एशिया में अपनी आक्रमणकारी योजनाओं को गति दी थी और भारत पर भी आक्रमण करने की योजना बनाई थी।
अंग्रेजों को यह डर था कि यदि कुंभ मेला आयोजित होता है, तो वहां लाखों लोग एकत्रित हो सकते हैं, जिनमें से कुछ पर जापान बमबारी कर सकता है। अंग्रेजी शासन को यह आशंका थी कि इस विशाल सभा को सुरक्षित रखना बहुत मुश्किल हो सकता है और इससे युद्ध के दौरान सुरक्षा के मुद्दे और गंभीर हो सकते थे।
स्वतंत्रता सेनानियों का मेला में शामिल होना
अंग्रेजों के डर का दूसरा कारण यह था कि स्वतंत्रता सेनानी कुंभ मेले को एक बड़े पैमाने पर जनसंगठनों और आंदोलनों के लिए अवसर मानते थे। वे इस आयोजन का उपयोग भारतीय जनता को एकजुट करने और अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम के लिए प्रेरित करने के रूप में करना चाहते थे।
ऐसे में अंग्रेजों को यह डर था कि कुंभ मेला स्वतंत्रता संग्रामियों के लिए एक मंच बन सकता है, जहां वे एकत्र होकर विरोध प्रदर्शन और विद्रोह की योजना बना सकते हैं।
अंग्रेजों का कड़ा निर्णय
इन दोनों कारणों से अंग्रेजों ने 1942 में प्रयाग कुंभ मेले पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया। उन्होंने तर्क दिया कि इतने बड़े पैमाने पर लोगों का एकत्र होना कानून और व्यवस्था की समस्या उत्पन्न कर सकता है और जापानी हमले का खतरा भी बढ़ सकता है। इसके अलावा, यदि स्वतंत्रता सेनानी इस मौके का फायदा उठाते, तो यह ब्रिटिश शासन के लिए और भी बड़ी चुनौती बन सकता था।
श्रद्धालुओं का विरोध
कुंभ मेले पर प्रतिबंध लगाने से लाखों श्रद्धालु निराश हुए। यह आयोजन उनके लिए धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता था। श्रद्धालुओं ने इस फैसले का विरोध किया और इंग्लैंड के खिलाफ आक्रोश व्यक्त किया, लेकिन अंग्रेजों ने अपना फैसला नहीं बदला और मेला रद्द कर दिया।
इस तरह, 1942 में कुंभ मेला पर लगाए गए प्रतिबंध ने न केवल धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाई, बल्कि यह उस समय के राजनीतिक माहौल और स्वतंत्रता संग्राम से भी गहरे रूप से जुड़ा था।
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