Punjab against Three Language Formula – पंजाब ने तीन भाषा फॉर्म्युला के खिलाफ खोला मोर्चा, तमिलनाडु और तेलंगाना की तरह विरोध में शामिल हुआ
Punjab against Three Language Formula – पंजाब, तेलंगाना और तमिलनाडु अब एकजुट होकर तीन भाषा फॉर्म्युला के खिलाफ विरोध में खड़े हो गए हैं, जो कि केंद्रीय शिक्षा नीति (NEP) के तहत लागू किया गया है। यह नया विवाद देश के विभिन्न हिस्सों में भाषाई स्वतंत्रता और राज्यों के अधिकारों को लेकर उठ रहा है।
तमिलनाडु का विरोध:
तमिलनाडु ने केंद्रीय फंड को रोकने और राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के कार्यान्वयन पर विरोध जताया।
मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने पीएम मोदी को पत्र लिखकर 2,512 करोड़ रुपये की केंद्रीय राशि जारी करने की मांग की थी, लेकिन केंद्र ने इसे NEP के लागू न होने की स्थिति में रोका।
शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने पलटवार करते हुए कहा कि NEP भाषाई स्वतंत्रता का सम्मान करता है और छात्रों को अपनी पसंद की भाषा में पढ़ाई जारी रखने की स्वतंत्रता देता है।
पंजाब और तेलंगाना का समर्थन:
पंजाब और तेलंगाना ने पंजाबी और तेलुगु को अपनी राज्य भाषा के रूप में अनिवार्य बनाने का ऐलान किया। इससे यह स्पष्ट हो गया कि यह मुद्दा अब एक राजनीतिक युद्ध बन चुका है, जहां भाषा का प्रभाव सीधे राज्य की पहचान और राजनीतिक माहौल पर पड़ता है।
बीजेपी की प्रतिक्रिया:
बीजेपी ने हिंदी थोपने के आरोपों को नकारते हुए कहा कि तीन भाषा नीति किसी एक भाषा को बढ़ावा देने के बजाय सभी भारतीय भाषाओं को समान अवसर प्रदान करती है।
बीजेपी के तमिलनाडु प्रमुख के अन्नामलाई ने आरोप लगाया कि डीएमके (द्रविड़ मुनेत्र कषगम) ने राजनीतिक फायदे के लिए इस नीति को गलत तरीके से प्रस्तुत किया।
भविष्य में क्या होगा?
यह भाषाई विवाद केवल तमिलनाडु, पंजाब और तेलंगाना तक सीमित नहीं रह सकता, बल्कि आने वाले समय में और राज्यों को भी यह मुद्दा प्रभावित कर सकता है।
केंद्र और राज्य सरकारों के बीच इस विवाद का राजनीतिक रंग गहरा सकता है, और इसका असर 2024 के आम चुनावों पर भी पड़ सकता है।
यह तीन भाषा फॉर्म्युला अब भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन चुका है, जिसमें हर राज्य की अपनी संस्कृति और भाषा का स्थान सुनिश्चित करने के लिए संघर्ष हो रहा है।
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