Aghori aur Mahakumbh Mela

Aghori aur Mahakumbh Mela – अघोरी बनने के लिए तीन कठिन परीक्षाएं: जान की बाजी लगाने के लिए रहना पड़ता है तैयार

Aghori aur Mahakumbh Mela – अघोरी बनने के लिए तीन कठिन परीक्षाएं: जान की बाजी लगाने के लिए रहना पड़ता है तैयार

Aghori aur Mahakumbh Mela – अघोरी साधु हिंदू धर्म में एक रहस्यमयी और रहस्यपूर्ण संप्रदाय के रूप में जाने जाते हैं। इन साधुओं का जीवन एक तपस्वी यात्रा है, जिसमें शारीरिक और मानसिक रूप से कठोरता से गुजरना पड़ता है।

अघोरी बनने के लिए शिष्य को तीन प्रमुख दीक्षाओं से गुजरना पड़ता है। हर दीक्षा एक नई चुनौती होती है और इनका उद्देश्य शिष्य को मानसिक, शारीरिक, और आध्यात्मिक दृष्टि से पूरी तरह से तैयार करना है।

आइए जानें उन तीन महत्वपूर्ण दीक्षाओं के बारे में, जिनके बाद ही कोई व्यक्ति अघोरी बन सकता है:

हरित दीक्षा

हरित दीक्षा अघोरी बनने की पहली प्रक्रिया है। इस दीक्षा में शिष्य को गुरु मंत्र दिया जाता है। यह मंत्र बहुत ही शक्तिशाली होता है और शिष्य को इसे नियमित रूप से जाप करना होता है। मंत्र का जाप शिष्य की मानसिक शक्ति को मजबूत करता है और वह आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त करता है।

इस दीक्षा से शिष्य के भीतर एकाग्रता और ध्यान की क्षमता विकसित होती है, जो आगे की कठोर साधना के लिए आवश्यक है। इस दीक्षा के बाद शिष्य को गहन साधना की दिशा में मार्गदर्शन मिलता है।

शिरीन दीक्षा

शिरीन दीक्षा दूसरी महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जिसमें शिष्य को तंत्र साधना के गहरे रहस्यों से अवगत कराया जाता है। इस दीक्षा में शिष्य को श्मशान में रहकर तपस्या करनी होती है।

श्मशान में रहते हुए शिष्य को न केवल भौतिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, बल्कि मानसिक रूप से भी उसे मजबूती से लड़ने की क्षमता प्राप्त होती है।

श्मशान की परिस्थितियों में सर्दी, गर्मी और बारिश जैसी कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। इस दीक्षा के दौरान शिष्य को आत्म-नियंत्रण और मानसिक स्थिरता की आवश्यकता होती है।

रंभत दीक्षा

रंभत दीक्षा अघोरी बनने की सबसे कठिन और अंतिम दीक्षा है। इस दीक्षा में शिष्य को अपनी पूरी जिंदगी और मृत्यु का अधिकार गुरु को सौंपना होता है। यह दीक्षा केवल उन साधकों को दी जाती है, जिन्होंने पहले दो दीक्षाओं में सफलता प्राप्त की है और जिन्होंने गुरु पर पूर्ण विश्वास और समर्पण दर्शाया है।

इस दीक्षा का उद्देश्य शिष्य को पूरी तरह से गुरु के आदेशों का पालन करने योग्य बनाना है। शिष्य को किसी भी प्रश्न या संकोच के बिना गुरु के आदेशों का पालन करना होता है, चाहे वह जीवन या मृत्यु से संबंधित हो।

निष्कर्ष

अघोरी बनने की प्रक्रिया एक लंबी और कठिन यात्रा है, जिसमें शिष्य को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से तैयार किया जाता है। इन तीन कठिन दीक्षाओं के बाद ही कोई व्यक्ति अघोरी बनने के योग्य हो सकता है।

अघोरियों का जीवन उनके अनुशासन, तपस्या और समर्पण का प्रतीक होता है, जो उन्हें अन्य साधुओं से विशिष्ट बनाता है। उनकी दुनिया गुप्त और रहस्यमयी है, और जनमानस में उनकी जिज्ञासा सदैव बनी रहती है।

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