Ambedkar Row – अंबेडकर का कांग्रेस के साथ विवाद और नेहरू की चिट्ठी का सच
Ambedkar Row –संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर को भारतीय राजनीति और समाज सुधारों में उनके योगदान के लिए एक उच्च स्थान दिया जाता है। लेकिन इतिहास के पन्नों में झांकने पर कांग्रेस पार्टी और अंबेडकर के बीच के तनावपूर्ण रिश्ते भी सामने आते हैं। हाल ही में संसद में गृह मंत्री अमित शाह द्वारा दिए गए बयान ने अंबेडकर और कांग्रेस के इतिहास पर नई बहस छेड़ दी।
नेहरू की लेडी माउंटबेटन को लिखी चिट्ठी
1952 में भारत के पहले आम चुनावों के दौरान पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लेडी माउंटबेटन को एक चिट्ठी लिखी थी। इस चिट्ठी में उन्होंने अंबेडकर और अन्य राजनीतिक दलों के साथ कांग्रेस के संबंधों पर चर्चा की थी।
नेहरू ने 16 जनवरी 1952 को अपनी चिट्ठी में लिखा:
“बंबई शहर और प्रांत में हमारी सफलता अपेक्षा से अधिक रही है। अंबेडकर को बाहर कर दिया गया है। समाजवादियों का प्रदर्शन खराब रहा है, जबकि कम्युनिस्टों ने अपेक्षा से बेहतर प्रदर्शन किया है।”
नेहरू ने यह भी लिखा कि अंबेडकर ने हिंदू संप्रदायवादियों के साथ गठबंधन किया है, जो नेहरू के अनुसार, कांग्रेस के खिलाफ “सिद्धांतहीन गठबंधन” था। नेहरू ने इस चिट्ठी में विभिन्न राजनीतिक दलों पर भी कटाक्ष किया, जो कांग्रेस को हराने के लिए एकजुट हो गए थे।
कांग्रेस और अंबेडकर के बीच तनाव
डॉ. अंबेडकर और कांग्रेस के बीच का रिश्ता कभी भी सहज नहीं रहा। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अंबेडकर कांग्रेस की नीतियों और नेतृत्व के आलोचक थे। संविधान निर्माण के समय उन्हें भारतीय संविधान का मसौदा तैयार करने का महत्वपूर्ण कार्य दिया गया, लेकिन यह सहयोग राजनीतिक मतभेदों से मुक्त नहीं था।
अंबेडकर का मानना था कि कांग्रेस ने दलितों के अधिकारों के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं किए। उन्होंने यह भी महसूस किया कि उन्हें कांग्रेस के भीतर उचित सम्मान नहीं दिया गया।
कैबिनेट से अंबेडकर का इस्तीफा
अंबेडकर ने 1951 में नेहरू कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था। उनके इस्तीफे का मुख्य कारण हिंदू कोड बिल को लेकर कांग्रेस के भीतर असहमति थी। अंबेडकर इस बिल को महिलाओं के अधिकारों और सामाजिक सुधारों के लिए महत्वपूर्ण मानते थे, लेकिन कांग्रेस के भीतर इसका व्यापक विरोध हुआ।
नेहरू और अंबेडकर के संबंध
नेहरू और अंबेडकर के संबंध जटिल थे। नेहरू ने अंबेडकर के प्रति अपने व्यक्तिगत सम्मान को हमेशा बनाए रखा, लेकिन राजनीतिक दृष्टिकोण से दोनों के बीच मतभेद गहरे थे। नेहरू की चिट्ठी में यह स्पष्ट होता है कि वह अंबेडकर की राजनीति और गठबंधन बनाने की रणनीति से असहमत थे।
राजनीतिक ध्रुवीकरण का आज का संदर्भ
आज अंबेडकर के प्रति कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दलों के दृष्टिकोण पर सवाल उठाए जा रहे हैं। भाजपा और कांग्रेस के बीच इस मुद्दे पर जारी सियासी लड़ाई अंबेडकर के ऐतिहासिक योगदान और उनके साथ किए गए व्यवहार की नए सिरे से समीक्षा का अवसर प्रदान करती है।
निष्कर्ष
डॉ. अंबेडकर और कांग्रेस के संबंध भारतीय राजनीति के इतिहास का एक जटिल और महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। नेहरू की लेडी माउंटबेटन को लिखी गई चिट्ठी और अंबेडकर के साथ कैबिनेट में हुए विवाद इन रिश्तों के तनावपूर्ण पहलुओं को उजागर करते हैं। आज भी अंबेडकर के विचार और उनके साथ किए गए राजनीतिक व्यवहार पर बहस जारी है, जो भारतीय लोकतंत्र और सामाजिक न्याय की दिशा में हमारे प्रयासों को नया दृष्टिकोण देती है।
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