Bhoot ki Kahani - रामू और डरावना भूत का सच

Bhoot ki Kahani – रामू और डरावना भूत का सच

Bhoot ki Kahani – रामू और डरावना भूत का सच

Bhoot ki Kahani – एक गाँव में रामू नाम का एक भोला और सीधा-साधा आदमी रहता था। रामू को हर छोटी-बड़ी चीज से डर लगता था, लेकिन सबसे ज्यादा डर उसे भूत-प्रेत से लगता था। गाँव के लोग उसकी इस कमजोरी को जानते थे और कभी-कभी उससे मजाक भी कर लेते थे।

श्यामू का शरारती प्लान

रामू का सबसे अच्छा दोस्त श्यामू था, जो मस्तीखोर और नटखट स्वभाव का था। एक दिन उसने सोचा कि रामू के डर का फायदा उठाकर उसे थोड़ा परेशान किया जाए। उसने गाँव के कुछ दोस्तों को साथ लिया और भूत बनने का नाटक करने का प्लान बना लिया।

डरावनी रात की शुरुआत

उस रात रामू खेत से लौट रहा था। रास्ता सुनसान था, और चाँदनी धुंधली सी लग रही थी। तभी अचानक एक सफेद कपड़े में लिपटा “भूत” रास्ते में आ खड़ा हुआ। यह भूत कोई और नहीं, बल्कि श्यामू ही था। उसने अपनी आवाज को डरावना बनाते हुए कहा, “मैं इस गाँव का सबसे खतरनाक भूत हूँ! अगर तुझे अपनी जान प्यारी है, तो मुझे हर महीने एक किलो दूध और एक किलो मावे की मिठाई चढ़ानी होगी, वरना तेरी खैर नहीं!”

रामू डर के मारे थर-थर काँपने लगा। उसने हाथ जोड़कर कहा, “भूतजी, मैं आपकी हर बात मानूँगा। बस मेरी जान बख्श दीजिए।”

रामू की मासूमियत का फायदा

डर से भरा रामू अपने घर भागा और पूरी रात सो नहीं पाया। अगले दिन उसने गाँव में अपनी मुलाकात “भूत” से होने की कहानी सुनाई। गाँव वाले, जो पहले से इस मजाक में शामिल थे, उसकी बात सुनकर सिर हिलाते और गंभीर चेहरे बनाते रहे।

श्यामू ने कहा, “रामू, तुम्हें भूत से बचने का तरीका पता है, अब हर महीने दूध और मिठाई चढ़ाना मत भूलना, नहीं तो बड़ी मुसीबत आएगी।”

रामू ने डरते-डरते हर महीने दूध और मिठाई का इंतजाम करना शुरू कर दिया। श्यामू और उसके दोस्त ये सारी मिठाई मजे से खा जाते और अपनी शरारत पर हँसते रहते।

सच का खुलासा

कुछ महीनों बाद, जब रामू को श्यामू और दोस्तों की बातों में शक हुआ, तो उसने एक रात चुपचाप उस जगह पर जाने का फैसला किया जहाँ “भूत” अक्सर मिलता था। उसने देखा कि “भूत” असल में श्यामू था। यह देख रामू की आँखें गुस्से से भर गईं, लेकिन तुरंत ही उसे अपनी मासूमियत पर हँसी आ गई।

अगले दिन रामू ने पूरे गाँव के सामने श्यामू और दोस्तों का राज खोल दिया। उसने मुस्कुराते हुए कहा, “तुम सबने मिलकर मुझे खूब बेवकूफ बनाया, लेकिन अब मैं भी डरने वाला रामू नहीं रहा!”

शिक्षा

यह कहानी हमें सिखाती है कि:

  • डर को खुद पर हावी न होने दें: डर को समझदारी से जीतना ही सच्ची बहादुरी है।
  • मासूमियत की हद: दूसरों पर आँख मूँदकर भरोसा करना हमें मुश्किल में डाल सकता है।
  • हँसी-मजाक की सीमा: शरारत में दूसरों को परेशान करना सही नहीं है।

रामू की इस कहानी ने गाँव वालों को हँसी और एक अहम सीख दोनों दी, और रामू ने साबित कर दिया कि डर का सामना करने से बड़ा कोई समाधान नहीं।

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