Chandigarh News https://chandigarhnews.net Latest Chandigarh News Tue, 21 Jan 2025 06:04:37 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.7.1 https://chandigarhnews.net/wp-content/uploads/2023/08/chandigarh-news-favicon-icon-1.jpg Chandigarh News https://chandigarhnews.net 32 32 Prayagraj Kumbh Mela 2025 Information – महाकुंभ में जा रहे हैं? जानें ये जरूरी जानकारी https://chandigarhnews.net/prayagraj-kumbh-mela-2025-information/ https://chandigarhnews.net/prayagraj-kumbh-mela-2025-information/#respond Mon, 20 Jan 2025 17:00:24 +0000 https://chandigarhnews.net/?p=56807 Prayagraj Kumbh Mela 2025 Information – महाकुंभ में जा रहे हैं? जानें ये जरूरी जानकारी Prayagraj Kumbh Mela 2025 Information

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Prayagraj Kumbh Mela 2025 Information – महाकुंभ में जा रहे हैं? जानें ये जरूरी जानकारी

Prayagraj Kumbh Mela 2025 Information – 2025 में प्रयागराज में आयोजित हो रहे महाकुंभ मेला को लेकर लाखों श्रद्धालु देश-विदेश से पहुंच रहे हैं। यह मेला भारत का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है, जो हर 12 साल में चार प्रमुख स्थानों – प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक, और उज्जैन में आयोजित होता है।

इस मेले का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व अत्यधिक है, और इसे यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में भी शामिल किया गया है। इस बार उत्तर प्रदेश के त्रिवेणी संगम पर आयोजित होने वाला महाकुंभ मेला बेहद खास होगा।

कुंभ स्नान 2025 के नियम

कुंभ स्नान करने से पहले कुछ विशेष नियमों का पालन करना जरूरी है, ताकि स्नान का पुण्य फल प्राप्त हो सके। यह स्नान मोक्ष प्राप्ति का सबसे बड़ा साधन माना जाता है। कुंभ स्नान करते समय आपको कुछ खास बातों का ध्यान रखना होगा, जैसे:

  • पूर्व दिशा में मुंह करके स्नान करें।
  • शाही स्नान के दिन साधु-संतों के बाद ही स्नान करें।

शाही स्नान की तिथियां 2025:

कुंभ मेले में शाही स्नान का खास महत्व है, जो निम्नलिखित तिथियों पर आयोजित होगा:

  • 13 जनवरी (पौष पूर्णिमा) – शाही स्नान संपन्न।
  • 14 जनवरी (मकर संक्रांति) – शाही स्नान संपन्न।
  • 29 जनवरी (मौनी अमावस्या) – शाही स्नान।
  • 3 फरवरी (बसंत पंचमी) – शाही स्नान।
  • 12 फरवरी (माघी पूर्णिमा) – शाही स्नान।
  • 26 फरवरी (महाशिवरात्रि) – अंतिम शाही स्नान।

क्या करें और क्या न करें: 

क्या करें:

शाही स्नान के दिन पहले साधु-संतों के स्नान के बाद स्नान करें।

शरीर को अच्छी तरह से साफ करके स्नान करें।

मन को शांत रखें और ध्यान केंद्रित करें।

कम से कम 5 डुबकी लगाएं।

क्या न करें:

साधु-संतों से पहले स्नान न करें।

स्नान के दौरान साबुन, शैंपू आदि का प्रयोग न करें।

नकारात्मक विचारों से बचें और स्नान के दौरान सिर्फ एक डुबकी न लगाएं।

शुद्धता का ध्यान रखें:

शाही स्नान के दौरान शुद्धता का विशेष ध्यान रखना चाहिए। स्नान करने से पहले शरीर को अच्छे से साफ करें और स्नान के दौरान मन को शांत रखें। स्नान के बाद दान-पुण्य के कार्य करने से भी पुण्य की प्राप्ति होती है। मंत्रों का जाप करने से मन को शांति मिलती है और पुण्य का संचय होता है।

कुंभ स्नान का महत्व:

कुंभ स्नान को मोक्ष प्राप्ति का सर्वोत्तम साधन माना जाता है। कहा जाता है कि कुंभ स्नान से सभी पाप धुल जाते हैं और व्यक्ति को आध्यात्मिक शक्ति मिलती है। यह एक पवित्र अनुष्ठान है, जिसमें भाग लेने से व्यक्ति की मानसिक शांति और जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं।

कुंभ मेला एक पवित्र धार्मिक अनुभव है, जिसे ध्यान और श्रद्धा से मनाना चाहिए। इन नियमों का पालन करके आप इस अद्भुत यात्रा का पूरा लाभ उठा सकते हैं।

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Rules for Mahakumbh Mela – कुंभ में संगम में डुबकी लगाने से पहले जान लें ये 3 महत्वपूर्ण नियम, वरना नहीं मिलेगा पूरा पुण्य https://chandigarhnews.net/rules-for-mahakumbh-mela/ https://chandigarhnews.net/rules-for-mahakumbh-mela/#respond Mon, 20 Jan 2025 16:30:23 +0000 https://chandigarhnews.net/?p=56806 Rules for Mahakumbh Mela – कुंभ में संगम में डुबकी लगाने से पहले जान लें ये 3 महत्वपूर्ण नियम, वरना

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Rules for Mahakumbh Mela – कुंभ में संगम में डुबकी लगाने से पहले जान लें ये 3 महत्वपूर्ण नियम, वरना नहीं मिलेगा पूरा पुण्य

Rules for Mahakumbh Mela – महाकुंभ 2025 में लाखों श्रद्धालु संगम में स्नान के लिए आते हैं। यह अवसर न केवल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह एक पवित्र यात्रा भी मानी जाती है, जिससे पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

लेकिन क्या आप जानते हैं कि कुंभ में संगम में स्नान करने से पहले कुछ विशेष नियमों का पालन करना आवश्यक है? अगर इन नियमों का पालन नहीं किया जाता, तो स्नान का पुण्य लाभ अधूरा हो सकता है।

आइए जानें ये नियम:

कुंभ स्नान के नियम:

पहला नियम: गृहस्थों को पांच बार डुबकी लगानी चाहिए

मान्यता: गृहस्थ व्यक्ति को कुंभ स्नान के दौरान पांच बार डुबकी लगानी चाहिए। यह डुबकी आपके पिताजी, माता जी, गुरु, कुल देवता और स्वयं के लिए होती है। इस प्रकार, प्रत्येक डुबकी एक विशेष उद्देश्य के साथ ली जाती है:

  • पहली डुबकी अपने पिता के लिए
  • दूसरी डुबकी अपनी माँ के लिए
  • तीसरी डुबकी अपने गुरु के लिए
  • चौथी डुबकी अपने कुल देवता के लिए
  • पांचवी डुबकी स्वयं के लिए

दूसरा नियम: कभी भी नागा साधु से पहले स्थान नहीं लेना चाहिए

मान्यता: कुंभ मेले में नागा साधुओं को विशेष स्थान प्राप्त होता है। उन्हें सम्मानित संत माना जाता है, और उनका स्थान सर्वोत्तम माना जाता है। इसलिए कभी भी नागा साधु से पहले संगम में स्नान नहीं करना चाहिए। ऐसा करना अपशकुन माना जाता है और यह पुण्य के मार्ग में विघ्न डाल सकता है।

तीसरा नियम: स्नान के बाद सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए

मान्यता: कुंभ स्नान के बाद सूर्य देव को अर्घ्य देना बहुत शुभ माना जाता है। इससे न केवल पापों का नाश होता है, बल्कि जीवन में सफलता और समृद्धि भी आती है। सूर्य को अर्घ्य देने से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है और जीवन के कष्ट दूर होते हैं।

कुंभ मेला का महत्व:

कुंभ मेला सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक और सांस्कृतिक प्रतीक भी है। यहाँ देश-विदेश से लोग एकत्रित होते हैं और एक साथ मिलकर धार्मिक अनुष्ठान करते हैं, जो सामाजिक एकता का प्रतीक है।

निष्कर्ष:

कुंभ स्नान एक पवित्र प्रक्रिया है, और यदि आप इन नियमों का पालन करते हैं, तो इसका फल आपको निश्चित रूप से मिलेगा। कुंभ मेला में भाग लेने से पहले इन नियमों को ध्यान में रखें, ताकि आप पूरी श्रद्धा और सम्मान के साथ इस पवित्र अनुष्ठान का अनुभव कर सकें।

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Mahakumbh Mela Budget – 1 दिन के लिए महाकुंभ यात्रा का बजट: जानें कितना होगा खर्च और कैसे करें बचत https://chandigarhnews.net/mahakumbh-mela-budget/ https://chandigarhnews.net/mahakumbh-mela-budget/#respond Mon, 20 Jan 2025 16:00:23 +0000 https://chandigarhnews.net/?p=56805 Mahakumbh Mela Budget – 1 दिन के लिए महाकुंभ यात्रा का बजट: जानें कितना होगा खर्च और कैसे करें बचत

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Mahakumbh Mela Budget – 1 दिन के लिए महाकुंभ यात्रा का बजट: जानें कितना होगा खर्च और कैसे करें बचत

Mahakumbh Mela Budget – महाकुंभ भारत का सबसे बड़ा धार्मिक मेला है, जिसमें लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं। यदि आप केवल एक दिन के लिए महाकुंभ यात्रा की योजना बना रहे हैं, तो यात्रा का बजट सही से बनाना बहुत जरूरी है, ताकि आप बिना किसी वित्तीय चिंता के यात्रा का आनंद ले सकें।

इस लेख में हम आपको महाकुंभ यात्रा के दौरान होने वाले खर्चों के बारे में जानकारी देंगे, ताकि आप अपनी यात्रा का बजट आसानी से तय कर सकें।

महाकुंभ यात्रा का बजट कैसे बनाएं? 

महाकुंभ यात्रा के बजट को बनाते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें: 

यात्रा का साधन:

आप किस माध्यम से महाकुंभ जाएंगे? ट्रेन, बस या हवाई जहाज, हर एक का खर्च अलग-अलग होगा। यदि आप ट्रेन या बस से यात्रा कर रहे हैं तो यह सस्ता होगा, जबकि हवाई यात्रा महंगी हो सकती है।

ठहरने की जगह:

आप कहां ठहरेंगे? होटल, धर्मशाला या शिविर में ठहरने का खर्च अलग-अलग होगा। शिविर या धर्मशाला में ठहरने से खर्च कम हो सकता है।

खाना:

आप कहां खाना खाएंगे? लंगर, होटल या ढाबे, हर एक का खर्च अलग-अलग होगा। लंगर में मुफ्त खाना मिलता है, जबकि होटल या ढाबे में खाने का खर्च अधिक हो सकता है।

दर्शन और अन्य खर्च:

आप किस मंदिर में दर्शन करेंगे और क्या आप विशेष पूजा करवाएंगे, इसके लिए भी अलग से बजट रखना होगा।

एक दिन के लिए महाकुंभ यात्रा का बजट:

महाकुंभ यात्रा का बजट कई कारकों पर निर्भर करता है, जैसे कि यात्रा का स्थान, यात्रा का समय और आपकी जीवनशैली। लेकिन सामान्यत: 1 दिन की यात्रा के लिए आपको निम्नलिखित खर्चों का सामना करना पड़ सकता है:

  • यात्रा का खर्च: ₹500 से ₹2000 (सार्वजनिक परिवहन या निजी वाहन के आधार पर)
  • ठहरने का खर्च: ₹200 से ₹500 (धर्मशाला या शिविर में)
  • खाने का खर्च: ₹200 से ₹500 (लंगर, ढाबा या होटल के आधार पर)
  • दर्शन और अन्य खर्च: ₹100 से ₹300 (विशेष पूजा या दर्शन)

कुल मिलाकर, एक दिन के लिए महाकुंभ यात्रा पर जाने के लिए आपको ₹1000 से ₹3500 तक का बजट बनाकर चलना चाहिए।

पैसे बचाने के टिप्स:

यात्रा का साधन:

आप सार्वजनिक परिवहन का उपयोग कर सकते हैं जो सस्ता होता है।

ठहरने की जगह:

आप धर्मशाला या शिविर में रह सकते हैं, जो कम खर्चीला होता है।

खाना:

आप लंगर का लाभ उठा सकते हैं या पैक्ड लंच ले सकते हैं।

दर्शन:

आप मुफ्त में होने वाले दर्शनों पर जा सकते हैं।

नकद लेकर जाएं:

एटीएम की सुविधा हर जगह उपलब्ध नहीं होती है, इसलिए नकद लेकर जाएं।

महाकुंभ यात्रा के दौरान क्या-क्या लेकर जाएं?

  • पानी की बोतल: गर्मियों में पानी की कमी हो सकती है, इसलिए पानी की बोतल जरूर रखें।
  • टॉवेल: स्नान के बाद टॉवेल का उपयोग करें।
  • सनस्क्रीन: धूप से बचने के लिए सनस्क्रीन का उपयोग करें।
  • चप्पल: पवित्र स्थानों पर चप्पल उतारनी होती है, इसलिए आरामदायक चप्पल रखें।
  • नकद: एटीएम की सुविधा हर जगह उपलब्ध नहीं होती है, इसलिए पर्याप्त नकद साथ रखें।
  • पर्सनल हाइजीन किट: साबुन, शैम्पू, टूथपेस्ट, टूथब्रश आदि शामिल करें।
  • दवाइयां: किसी भी आपात स्थिति के लिए दवाइयां अपने साथ रखें।

महाकुंभ यात्रा एक पवित्र और अद्भुत अनुभव है। यदि आप पहले से योजना बनाकर और बजट का ध्यान रखते हुए यात्रा करेंगे, तो आप इस यात्रा का पूरा आनंद ले सकते हैं।

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Mahakumbh Mela Rules – महाकुंभ में जाने से पहले जान लें मेले से जुड़े उत्तर प्रदेश सरकार के नियम https://chandigarhnews.net/mahakumbh-mela-rules/ https://chandigarhnews.net/mahakumbh-mela-rules/#respond Mon, 20 Jan 2025 15:30:22 +0000 https://chandigarhnews.net/?p=56804 Mahakumbh Mela Rules – महाकुंभ में जाने से पहले जान लें मेले से जुड़े उत्तर प्रदेश सरकार के नियम Mahakumbh

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Mahakumbh Mela Rules – महाकुंभ में जाने से पहले जान लें मेले से जुड़े उत्तर प्रदेश सरकार के नियम

Mahakumbh Mela Rules – महाकुंभ भारत का सबसे बड़ा और पवित्र धार्मिक मेला है, जिसमें हर साल लाखों श्रद्धालु हिस्सा लेते हैं। इस बार महाकुंभ का आयोजन 13 जनवरी से 26 फरवरी 2025 तक उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में हो रहा है।

श्रद्धालुओं की सुरक्षा और सुविधा के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने कुछ महत्वपूर्ण नियम बनाए हैं जिन्हें पालन करना सभी श्रद्धालुओं के लिए अनिवार्य है। यदि आप भी महाकुंभ में भाग लेने जा रहे हैं, तो इन नियमों को जानना और उनका पालन करना जरूरी है।

महाकुंभ मेले के प्रमुख नियम: 

ई-पास अनिवार्य:

महाकुंभ में प्रवेश करने के लिए ई-पास लेना अनिवार्य है। श्रद्धालु इसे ऑनलाइन माध्यम से प्राप्त कर सकते हैं।

नदी में स्नान:

श्रद्धालुओं को निर्धारित और सुरक्षित क्षेत्रों में ही स्नान करना होगा। यह सुनिश्चित करने के लिए कि स्नान सुरक्षित और व्यवस्थित तरीके से हो सके।

प्लास्टिक का प्रयोग वर्जित:

मेला क्षेत्र में प्लास्टिक के थैले, बोतलें और अन्य प्लास्टिक सामग्री का उपयोग पूरी तरह से प्रतिबंधित है। इसका उद्देश्य पर्यावरण को सुरक्षित रखना और प्रदूषण को कम करना है।

खुले में शौच:

खुले में शौच करना पूरी तरह से प्रतिबंधित है। श्रद्धालुओं को मेला क्षेत्र में बनाए गए शौचालयों का ही उपयोग करना होगा।

ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण:

मेला क्षेत्र में ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए विशेष नियम बनाए गए हैं। इससे मेला क्षेत्र में शांति बनी रहती है और अन्य श्रद्धालुओं को कोई असुविधा नहीं होती।

अग्निशमन:

मेला क्षेत्र में आग बुझाने के उपकरणों का सही तरीके से उपयोग करने के लिए नियम बनाए गए हैं। यह सुरक्षा को सुनिश्चित करता है और किसी भी आकस्मिक आगजनी से बचाव करता है।

अन्य प्रतिबंध:

मेले में भीड़भाड़ वाले स्थानों पर धूम्रपान, मद्यपान और अन्य हानिकारक गतिविधियों पर भी प्रतिबंध है। यह नियम मेले की पवित्रता बनाए रखने और श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए हैं।

निष्कर्ष:

महाकुंभ मेला एक अद्भुत और पवित्र धार्मिक अनुभव होता है। इन नियमों का पालन करके आप न केवल अपनी सुरक्षा सुनिश्चित कर सकते हैं, बल्कि अन्य श्रद्धालुओं की सुरक्षा में भी मदद कर सकते हैं।

नियमों का पालन करना मेले को सही तरीके से और सुरक्षित रूप से आयोजित करने में मदद करता है, जिससे सभी को एक अच्छे अनुभव का लाभ मिलता है।

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Maha Kumbh Mahila Naga Sadhu Story – कैसे बनती हैं महिला नागा साधु? https://chandigarhnews.net/maha-kumbh-mahila-naga-sadhu-story/ https://chandigarhnews.net/maha-kumbh-mahila-naga-sadhu-story/#respond Mon, 20 Jan 2025 15:00:22 +0000 https://chandigarhnews.net/?p=56803 Maha Kumbh Mahila Naga Sadhu Story – कैसे बनती हैं महिला नागा साधु? Maha Kumbh Mahila Naga Sadhu Story –

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Maha Kumbh Mahila Naga Sadhu Story – कैसे बनती हैं महिला नागा साधु?

Maha Kumbh Mahila Naga Sadhu Story – महाकुंभ में महिला नागा साधुओं को लेकर हमेशा एक विशेष उत्सुकता बनी रहती है। यह जानना रोचक है कि कोई महिला नागा साधु कैसे बनती है और उनका जीवन कैसा होता है।

आमतौर पर कुंभ या महाकुंभ में महिला नागा साधु दिखाई नहीं देती थीं, लेकिन हाल के वर्षों में विशेष रूप से प्रयागराज महाकुंभ में महिलाओं के अखाड़े का गठन हुआ है और उनकी उपस्थिति बढ़ी है। इस बार महिला नागा साधु अपने स्वयं के शिविरों के साथ दिखाई देंगी।

नागा साधु बनने की प्रक्रिया:

महिला नागा साधु बनने की प्रक्रिया अत्यंत कठिन और दीक्षा आधारित होती है। यह प्रक्रिया कुछ इस प्रकार होती है:

दीक्षा लेने की प्रक्रिया:

महिला नागा संन्यासिन बनने के लिए उसे जूना अखाड़े के किसी महिला या पुरुष संत से दीक्षा लेनी होती है।

संन्यास लेने से पहले, महिला के परिवार और उसके पिछले जन्म की जांच की जाती है, यह सुनिश्चित किया जाता है कि उसने संसार से मोह त्याग दिया है।

महिला को 6 माह तक ब्रह्मचर्य और यम-नियम का पालन करना होता है, जिससे आचार्य संतुष्ट होते हैं और दीक्षा दी जाती है।

दीक्षा के बाद:

महिला अपने सांसारिक वस्त्र उतारकर पीला वस्त्र धारण करती है।

फिर वह मुंडन कराती है और अपना पिंडदान स्वयं करती है। इसके बाद उसे नदी में स्नान करने के लिए भेजा जाता है।

महिला को 6 से 12 वर्षों तक ध्यान और तपस्या करनी होती है।

पूर्ण दीक्षा:

जब महिला सभी तप और परीक्षाओं को सफलतापूर्वक पार कर लेती है, तो उसे ‘माता’ की उपाधि दी जाती है।

इस उपाधि के बाद, वह महिला संन्यासी अखाड़े की मान्य सदस्य बन जाती है और सभी साधु-संत उसे ‘माता’ कहकर संबोधित करते हैं।

महिला नागा साधु का जीवन:

महिला नागा साधुओं का जीवन अनुशासन और तपस्या से भरा होता है। हालांकि, वे सार्वजनिक रूप से निर्वस्त्र नहीं होतीं, जैसे पुरुष नागा साधु होते हैं। उनके जीवन की विशेषताएं इस प्रकार हैं:

वस्त्र: महिला नागा साधु को एक ही वस्त्र पहनने की अनुमति होती है, जिसे ‘गंती’ कहा जाता है। यह कपड़ा भी सिला हुआ नहीं होता है।

स्नान: कुंभ में स्नान करते समय महिला साधु नग्न स्नान नहीं करतीं। वे गेरुए वस्त्र में ही स्नान करती हैं।

धार्मिक क्रियाएँ: महिला नागा साधु दिनभर भगवान का जाप करती हैं। वे ब्रह्ममुहुर्त में उठकर शिवजी का जाप करती हैं और शाम को दत्तात्रेय भगवान की पूजा करती हैं। दोपहर में भोजन करने के बाद पुनः शिवजी का जाप करती हैं और फिर शयन करती हैं।

अखाड़े में सम्मान: महिला संन्यासिनों को अखाड़े में पूरा सम्मान मिलता है। उनका माई बाड़ा नामक शिविर जूना अखाड़े के पास होता है, जहां वे विशेष ध्यान और तपस्या करती हैं।

महिला नागा साधुओं के अखाड़े: 

माई बाड़ा अखाड़ा:

जूना अखाड़े में महिलाएं नागा और मंडलेश्वर पद प्राप्त करती हैं। 2013 में, जूना अखाड़े ने ‘माई बाड़ा’ को दशनाम संन्यासिनी अखाड़ा के रूप में स्थापित किया था।

इस अखाड़े की महिला साधुओं को ‘माई’, ‘अवधूतानी’ या ‘नागिन’ कहा जाता है।

‘माई’ पद पर चुनी गई महिलाएं कुंभ के शाही स्नान के दौरान पालकी में चलती हैं और उनके पास अखाड़े का ध्वज, डंका और दाना रखने की छूट होती है।

विदेशी महिला नागा साधु:

जूना अखाड़े में बड़ी संख्या में विदेशी महिलाएं भी हैं, खासकर यूरोप और नेपाल से। नेपाल में ऊंची जाति की विधवाओं के लिए पुनर्विवाह की अनुमति नहीं होती, इसलिए वे अपने घर लौटने की बजाय साधु बनकर नए जीवन की शुरुआत करती हैं।

इन महिलाओं का नागा साधु बनने का आकर्षण अधिक है, भले ही इसके लिए कठोर तपस्या और तप का पालन करना होता है।

निष्कर्ष:

महिला नागा साधु बनने का मार्ग कठिन और तपस्वी है, लेकिन इसके द्वारा महिलाएं न केवल धार्मिक समर्पण की एक नई परिभाषा स्थापित करती हैं, बल्कि समाज में अपनी पहचान भी बनाती हैं। कुंभ जैसे महापर्व पर इनका विशेष स्थान होता है और उनके जीवन का यह सफर एक अद्वितीय आध्यात्मिक यात्रा के रूप में देखा जाता है।

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Kalpvas in Mahakumbh – महाकुंभ में कल्पवास क्या है? जानें महत्व, लाभ और नियम के बारे में https://chandigarhnews.net/kalpvas-in-mahakumbh/ https://chandigarhnews.net/kalpvas-in-mahakumbh/#respond Mon, 20 Jan 2025 14:30:21 +0000 https://chandigarhnews.net/?p=56802 Kalpvas in Mahakumbh – महाकुंभ में कल्पवास क्या है? जानें महत्व, लाभ और नियम के बारे में Kalpvas in Mahakumbh

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Kalpvas in Mahakumbh – महाकुंभ में कल्पवास क्या है? जानें महत्व, लाभ और नियम के बारे में

Kalpvas in Mahakumbh कल्पवास महाकुंभ में एक विशेष तपस्या और धार्मिक व्रत है, जिसे आत्मशुद्धि, मोक्ष प्राप्ति और ईश्वर से जुड़ाव के लिए किया जाता है। कुंभ मेले के दौरान लाखों श्रद्धालु इस कठिन तपस्या में भाग लेते हैं, जिसमें वे एक महीने तक संगम के तट पर रहते हुए वेदों का अध्ययन, ध्यान और पूजा करते हैं।

कल्पवास क्या है?

धार्मिक मान्यतानुसार, कल्पवास का शाब्दिक अर्थ है ‘कल्प के लिए व्रत रखना’, और कल्प ब्रह्मा जी के एक दिन के बराबर माना जाता है। हालांकि, कुंभ मेले में कल्पवास एक महीने के लिए किया जाता है। यह तपस्या व्यक्ति को पूरी तरह से शारीरिक और मानसिक रूप से शुद्ध करने के लिए होती है, जिसमें व्यक्ति विशेष रूप से अपने आहार, नींद और अन्य जीवनशैली पर नियंत्रण रखता है।

कुंभ मेले में कल्पवास का विशेष महत्व:

कल्पवास एक कठिन तपस्या है, लेकिन इसका महत्व बहुत गहरा है। कुंभ मेले के दौरान कल्पवास करने से आत्मशुद्धि होती है और मोक्ष की प्राप्ति का रास्ता खुलता है। माना जाता है कि कुंभ मेले में किया गया कल्पवास लाखों गुना फल देता है और व्यक्ति को जीवन के सभी दोषों से मुक्त कर देता है।

कल्पवास के लाभ:

शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य: कल्पवास करने से शरीर और मन दोनों स्वस्थ रहते हैं। यह तपस्या शारीरिक थकावट को कम करने के साथ मानसिक शांति और संतुलन को बढ़ाती है।

आत्मविश्वास में वृद्धि: यह व्रत आत्मविश्वास बढ़ाने में मदद करता है, क्योंकि व्यक्ति अपने इच्छाशक्ति और अनुशासन में सुधार करता है।

धैर्य और संयम: कल्पवास के दौरान व्यक्ति को कठिन परिस्थितियों का सामना करने और संयम रखने की कला सीखने को मिलती है।

आध्यात्मिक विकास: इस तपस्या के माध्यम से व्यक्ति का आध्यात्मिक विकास होता है, जिससे उसे ईश्वर का साक्षात्कार और आत्मज्ञान प्राप्त होता है।

कल्पवास के नियम:

भोजन: कल्पवास के दौरान व्यक्ति केवल सात्विक भोजन करता है, जिसमें फल, सब्जियां और दूध शामिल होते हैं।

निद्रा: कल्पवास के दौरान व्यक्ति कम से कम सोता है, ताकि अधिक समय ध्यान और पूजा में लग सके।

वस्त्र: इस दौरान सफेद या पीले रंग के वस्त्र पहने जाते हैं, जो शुद्धता और आध्यात्मिकता का प्रतीक होते हैं।

नियमित स्नान: हर दिन पवित्र नदी में स्नान करना अनिवार्य होता है, जिससे शारीरिक और मानसिक शुद्धता बनी रहती है।

मंत्र जाप: कल्पवास के दौरान विभिन्न धार्मिक मंत्रों का जाप किया जाता है, जो व्यक्ति की आध्यात्मिक यात्रा को प्रगति की दिशा में अग्रसर करते हैं।

धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन: इस समय में धार्मिक ग्रंथों और शास्त्रों का अध्ययन करना आवश्यक होता है।

ब्रह्मचर्य पालन: कल्पवास के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करना जरूरी होता है, जिससे मानसिक और शारीरिक शुद्धता बनी रहती है।

कल्पवास क्यों किया जाता है?

धार्मिक महत्व: हिंदू धर्म में कल्पवास को मोक्ष प्राप्ति का एक प्रभावी साधन माना जाता है। इसे करने से सभी पाप धुल जाते हैं और व्यक्ति को मोक्ष मिलता है।

आत्मशुद्धि: कुंभ में कल्पवास करते समय व्यक्ति आत्मशुद्धि की प्रक्रिया से गुजरता है, जिससे वह अपने जीवन की दिशा को सही कर सकता है।

ईश्वर से जुड़ाव: यह तपस्या व्यक्ति को ईश्वर के करीब लाती है और उसकी आध्यात्मिक स्थिति को ऊंचा करती है।

निष्कर्ष:

कल्पवास महाकुंभ में एक अत्यधिक महत्वपूर्ण और कठिन तपस्या है, जिसका उद्देश्य न केवल शारीरिक और मानसिक शुद्धि है, बल्कि यह व्यक्ति को आध्यात्मिक उन्नति की ओर भी अग्रसर करता है। यह तपस्या करने से आत्मज्ञान, मोक्ष और ईश्वर के साथ एक गहरा संबंध स्थापित होता है, जो जीवन में शांति और संतुष्टि लाता है।

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Kumbh Mela Mythological Story – चंद्रमा की इस गलती की वजह से लगता है महाकुंभ, जानिए पौराणिक कथा https://chandigarhnews.net/kumbh-mela-mythological-story/ https://chandigarhnews.net/kumbh-mela-mythological-story/#respond Mon, 20 Jan 2025 14:00:21 +0000 https://chandigarhnews.net/?p=56801 Kumbh Mela Mythological Story – चंद्रमा की इस गलती की वजह से लगता है महाकुंभ, जानिए पौराणिक कथा Kumbh Mela

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Kumbh Mela Mythological Story – चंद्रमा की इस गलती की वजह से लगता है महाकुंभ, जानिए पौराणिक कथा

Kumbh Mela Mythological Story – महाकुंभ, भारत का सबसे बड़ा और पवित्र धार्मिक आयोजन, हर 12 साल में एक बार आयोजित होता है। इस बार यह आयोजन प्रयागराज में त्रिवेणी संगम पर हो रहा है, जहां लाखों श्रद्धालु गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम में पवित्र डुबकी लगाकर पुण्य की प्राप्ति करेंगे।

लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस महाकुंभ के आयोजन का श्रेय चंद्रमा को जाता है? और यह श्रेय उन्हें एक गलती की वजह से मिला, जिसे जानकर आप चौंक सकते हैं। आइए जानते हैं चंद्रमा की गलती के कारण महाकुंभ क्यों लगता है, इसके पीछे की पौराणिक कथा।

अमृत मंथन और चंद्रमा की भूमिका

महाकुंभ मेले की उत्पत्ति समुद्र मंथन से जुड़ी है, जिसे देवताओं और असुरों ने मिलकर किया था। समुद्र मंथन से अमृत (अमृत कलश) निकला था, जो अमरता का प्रतीक माना जाता है।

इस अमृत को पाने के लिए देवताओं और असुरों के बीच एक भयंकर युद्ध हुआ था। देवताओं और असुरों दोनों को यह अमृत प्राप्त करने के लिए लंबी संघर्ष करना पड़ा।

इस युद्ध में अमृत कलश को लाने की जिम्मेदारी सूर्य, चंद्रमा, गुरु और शनि को दी गई थी। लेकिन चंद्रमा ने अमृत कलश को पकड़ते हुए एक गलती की। जब वह अमृत कलश को संभाल रहे थे, तो उन्होंने थोड़ी सी अमृत पी ली। और इसी दौरान चंद्रमा से अमृत की कुछ बूंदें गिर गईं।

अमृत की बूंदें और चार धाम

चंद्रमा से गिरी अमृत की बूंदें चार स्थानों पर गिरीं: प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन। यह चार स्थान पवित्र माने गए, क्योंकि जहां-जहां अमृत की बूंदें गिरीं, वहां पवित्र नदियां बहने लगीं और वे स्थान विशेष रूप से पवित्र हो गए। इन स्थानों पर स्नान करने से सभी पापों का नाश होता है और व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

इन्हीं चार स्थानों पर कुंभ मेला आयोजित किया जाता है। कुंभ मेला न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी एक बड़ा आयोजन है।

मान्यता है कि कुंभ मेले के दौरान इन स्थानों पर स्नान करने से व्यक्ति को अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। यही कारण है कि महाकुंभ का आयोजन इन चार स्थानों पर हर 12 वर्ष में एक बार किया जाता है।

कुंभ मेला: एक सांस्कृतिक और धार्मिक प्रतीक

महाकुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, सभ्यता और समाज की एकता का प्रतीक भी है। यह मेला लाखों लोगों को एक साथ लाता है, जहां विभिन्न धर्मों, जातियों और समुदायों के लोग एकत्रित होते हैं। यहां सामाजिक एकता और भारतीय संस्कृति का प्रकट रूप देखा जा सकता है।

इस प्रकार, चंद्रमा की वह गलती जो अमृत पीने के दौरान हुई, वह आज हमें महाकुंभ के रूप में एक साथ लाकर धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से जोड़ती है। महाकुंभ का आयोजन सिर्फ धार्मिक महत्व नहीं, बल्कि यह भारतीय सभ्यता के गौरव और वैभव का प्रतीक बन चुका है।

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Chinese Connection of Kumbh Mela – कुंभ मेले का क्या है चीन कनेक्शन? जानिए कुंभ का रोचक इतिहास https://chandigarhnews.net/chinese-connection-of-kumbh-mela/ https://chandigarhnews.net/chinese-connection-of-kumbh-mela/#respond Mon, 20 Jan 2025 13:30:21 +0000 https://chandigarhnews.net/?p=56800 Chinese Connection of Kumbh Mela – कुंभ मेले का क्या है चीन कनेक्शन? जानिए कुंभ का रोचक इतिहास Chinese Connection

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Chinese Connection of Kumbh Mela – कुंभ मेले का क्या है चीन कनेक्शन? जानिए कुंभ का रोचक इतिहास

Chinese Connection of Kumbh Mela महाकुंभ एक ऐसा भव्य और ऐतिहासिक धार्मिक आयोजन है, जो न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है। इस मेले में लाखों श्रद्धालु गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर स्नान करने के लिए इकट्ठा होते हैं।

लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस प्राचीन और विशाल आयोजन का चीन से भी एक गहरा संबंध है? यह जानकर आपको आश्चर्य हो सकता है, लेकिन यह पूरी तरह से सच है। आइए जानें कुंभ मेले का चीन से क्या कनेक्शन है और इसके ऐतिहासिक महत्व को।

ह्वेनसांग और कुंभ मेला

प्राचीन काल में, चीनी बौद्ध भिक्षु और यात्री ह्वेनसांग (जिसे ज़ुआनज़ैंग भी कहा जाता है) ने 7वीं शताब्दी में भारत की यात्रा की थी। वह एक प्रसिद्ध विद्वान थे, जिन्होंने भारत में कई वर्षों तक बौद्ध धर्म का अध्ययन किया और विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक स्थलों का दौरा किया। उनके यात्रा वृत्तांतों से हमे उस समय के भारत और धार्मिक आयोजनों के बारे में कई महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है।

ह्वेनसांग ने अपने यात्रा वृत्तांत में विशेष रूप से प्रयाग (वर्तमान प्रयागराज) में आयोजित होने वाले कुंभ मेले का उल्लेख किया है। उनके अनुसार, इस मेले में लाखों लोग एकत्रित होते थे, और यह आयोजन न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का भी केंद्र बनता था। ह्वेनसांग ने कुंभ मेला में भाग लेने वाले श्रद्धालुओं के धर्मनिष्ठा और अनुष्ठानों के बारे में भी लिखा है।

ह्वेनसांग के वृत्तांत में कुंभ मेले का वर्णन

ह्वेनसांग ने अपने वृत्तांत में कुंभ मेले के भव्य दृश्यों का वर्णन किया है। उन्होंने बताया कि कैसे लाखों लोग गंगा नदी में स्नान करने के लिए एकत्र होते हैं, जिससे उन्हें पवित्रता प्राप्त होती है।

इसके साथ ही, उन्होंने मेले के दौरान होने वाले धार्मिक अनुष्ठानों, साधु-संतों के प्रवचनों और सांस्कृतिक गतिविधियों का भी विस्तार से वर्णन किया। ह्वेनसांग ने यह भी उल्लेख किया कि यह मेला न केवल भारत के अंदर बल्कि विदेशों में भी प्रसिद्ध था।

ह्वेनसांग के वृत्तांत से यह भी साफ होता है कि कुंभ मेला उस समय भी भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का एक अभिन्न हिस्सा था। यह आयोजन न केवल भारतीयों के लिए, बल्कि विदेशी आगंतुकों के लिए भी एक आकर्षण का केंद्र था।

ह्वेनसांग के माध्यम से चीन को भारतीय धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं के बारे में जानकारी मिली, और यह संप्रेषण भारत और चीन के बीच एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक संपर्क का उदाहरण बना।

कुंभ मेले का सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व

ह्वेनसांग के वृत्तांत से यह स्पष्ट होता है कि कुंभ मेला न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक धरोहर का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

इस मेले में विभिन्न जातियों और धर्मों के लोग एक साथ आते हैं और सांस्कृतिक आदान-प्रदान करते हैं। यह आयोजन उस समय से लेकर आज तक भारत के सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक बना हुआ है।

आज भी कुंभ मेला और चीन कनेक्शन

ह्वेनसांग के माध्यम से चीन को भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर के बारे में जानकारी मिली। यह यात्रा न केवल बौद्ध धर्म के प्रसार में सहायक रही, बल्कि भारत और चीन के बीच सांस्कृतिक संबंधों को भी मजबूत किया। आज भी महाकुंभ मेला चीन सहित अन्य देशों से आए श्रद्धालुओं के लिए एक आकर्षण का केंद्र है।

इस प्रकार, कुंभ मेला न केवल भारतीय संस्कृति का प्रतीक है, बल्कि इसका ऐतिहासिक कनेक्शन चीन के साथ यह दर्शाता है कि धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों के माध्यम से विभिन्न देशों के बीच आदान-प्रदान और समझ बनती है।

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Ban on Kumbh Mela Story – 1942 में प्रयाग पर बम गिरने के डर से अंग्रेजों ने क्यों लगाया था प्रतिबंध, जानिए इतिहास https://chandigarhnews.net/ban-on-kumbh-mela-story/ https://chandigarhnews.net/ban-on-kumbh-mela-story/#respond Mon, 20 Jan 2025 13:00:21 +0000 https://chandigarhnews.net/?p=56799 Ban on Kumbh Mela Story – 1942 में प्रयाग पर बम गिरने के डर से अंग्रेजों ने क्यों लगाया था

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Ban on Kumbh Mela Story – 1942 में प्रयाग पर बम गिरने के डर से अंग्रेजों ने क्यों लगाया था प्रतिबंध, जानिए इतिहास

Ban on Kumbh Mela Story – भारत का महाकुंभ एक ऐसा धार्मिक आयोजन है, जो प्राचीन काल से चला आ रहा है। यह आयोजन लाखों श्रद्धालुओं के लिए आस्था और धार्मिक भावना का केंद्र बनता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि 1942 में अंग्रेजों ने इस महान धार्मिक आयोजन पर प्रतिबंध लगा दिया था?

इसके पीछे कई राजनीतिक और सैन्य कारण थे, जो उस समय की वैश्विक और राष्ट्रीय परिस्थितियों से जुड़े थे। आइए जानते हैं उस ऐतिहासिक घटना का कारण और इसके पीछे की कहानी।

द्वितीय विश्व युद्ध का प्रभाव

1942 में जब दुनिया द्वितीय विश्व युद्ध की चपेट में थी, तब भारत भी ब्रिटिश साम्राज्य के तहत था। जापान ने दक्षिण-पूर्व एशिया में अपनी आक्रमणकारी योजनाओं को गति दी थी और भारत पर भी आक्रमण करने की योजना बनाई थी।

अंग्रेजों को यह डर था कि यदि कुंभ मेला आयोजित होता है, तो वहां लाखों लोग एकत्रित हो सकते हैं, जिनमें से कुछ पर जापान बमबारी कर सकता है। अंग्रेजी शासन को यह आशंका थी कि इस विशाल सभा को सुरक्षित रखना बहुत मुश्किल हो सकता है और इससे युद्ध के दौरान सुरक्षा के मुद्दे और गंभीर हो सकते थे।

स्वतंत्रता सेनानियों का मेला में शामिल होना

अंग्रेजों के डर का दूसरा कारण यह था कि स्वतंत्रता सेनानी कुंभ मेले को एक बड़े पैमाने पर जनसंगठनों और आंदोलनों के लिए अवसर मानते थे। वे इस आयोजन का उपयोग भारतीय जनता को एकजुट करने और अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम के लिए प्रेरित करने के रूप में करना चाहते थे।

ऐसे में अंग्रेजों को यह डर था कि कुंभ मेला स्वतंत्रता संग्रामियों के लिए एक मंच बन सकता है, जहां वे एकत्र होकर विरोध प्रदर्शन और विद्रोह की योजना बना सकते हैं।

अंग्रेजों का कड़ा निर्णय

इन दोनों कारणों से अंग्रेजों ने 1942 में प्रयाग कुंभ मेले पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया। उन्होंने तर्क दिया कि इतने बड़े पैमाने पर लोगों का एकत्र होना कानून और व्यवस्था की समस्या उत्पन्न कर सकता है और जापानी हमले का खतरा भी बढ़ सकता है। इसके अलावा, यदि स्वतंत्रता सेनानी इस मौके का फायदा उठाते, तो यह ब्रिटिश शासन के लिए और भी बड़ी चुनौती बन सकता था।

श्रद्धालुओं का विरोध

कुंभ मेले पर प्रतिबंध लगाने से लाखों श्रद्धालु निराश हुए। यह आयोजन उनके लिए धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता था। श्रद्धालुओं ने इस फैसले का विरोध किया और इंग्लैंड के खिलाफ आक्रोश व्यक्त किया, लेकिन अंग्रेजों ने अपना फैसला नहीं बदला और मेला रद्द कर दिया।

इस तरह, 1942 में कुंभ मेला पर लगाए गए प्रतिबंध ने न केवल धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाई, बल्कि यह उस समय के राजनीतिक माहौल और स्वतंत्रता संग्राम से भी गहरे रूप से जुड़ा था।

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Donald Trump Oath Ceremony – डोनाल्ड ट्रंप का शपथ ग्रहण समारोह: कार्यक्रम और डिटेल्स https://chandigarhnews.net/donald-trump-oath-ceremony/ https://chandigarhnews.net/donald-trump-oath-ceremony/#respond Mon, 20 Jan 2025 12:30:20 +0000 https://chandigarhnews.net/?p=56798 Donald Trump Oath Ceremony – डोनाल्ड ट्रंप का शपथ ग्रहण समारोह: कार्यक्रम और डिटेल्स Donald Trump Oath Ceremony – डोनाल्ड

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Donald Trump Oath Ceremony – डोनाल्ड ट्रंप का शपथ ग्रहण समारोह: कार्यक्रम और डिटेल्स

Donald Trump Oath Ceremony – डोनाल्ड ट्रंप 20 जनवरी 2025 को अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ लेंगे। शपथ ग्रहण समारोह वाशिंगटन डीसी में आयोजित होगा और इस समारोह के दौरान कुछ प्रमुख कार्यक्रम होंगे।

समारोह का समय: ट्रंप शपथ ग्रहण समारोह 12:00 बजे (अमेरिकी समय) होगा, जो भारत में रात 10:30 बजे होगा।

स्थान: समारोह पहले यूएस कैपिटल में आयोजित होने वाला था, लेकिन अत्यधिक ठंड के कारण इसे बड़े हॉल में स्थानांतरित कर दिया गया है।

शपथ लेने वाला: अमेरिकी संविधान के अनुसार, शपथ सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश द्वारा दिलाई जाएगी।

समारोह में शामिल होने वाले प्रमुख लोग:

भारतीय मेहमान: मुकेश अंबानी और नीता अंबानी समारोह में भाग लेने के लिए अमेरिका पहुंचे हैं, साथ ही भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर भी उपस्थित होंगे।

ट्रंप के मेहमान: ट्रंप ने प्रमुख तकनीकी दिग्गजों को भी शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित किया है, जिनमें एलन मस्क, जेफ बेजोस, मार्क जुकरबर्ग, और टिकटॉक के प्रमुख शॉ च्यू शामिल हैं।

पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति: समारोह में बिल क्लिंटन, जॉर्ज डब्ल्यू बुश, और बराक ओबामा जैसे सभी जीवित पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति भी शामिल हो सकते हैं।

विदेशी नेता: विदेशी नेताओं में इटली की पीएम जॉर्जिया मेलोनी, हंगरी के विक्टर ओर्बन, और अर्जेंटीना के राष्ट्रपति जेवियर माइली को आमंत्रित किया गया है, हालांकि शी जिनपिंग (चीन) इस समारोह में भाग नहीं लेंगे।

समारोह के अन्य प्रमुख कार्यक्रम:

शपथ ग्रहण के बाद, ट्रंप उद्घाटन भाषण देंगे, जिसमें वह आगामी चार वर्षों के लिए अपनी योजनाओं का उल्लेख करेंगे।

इसके बाद, वह संयुक्त उद्घाटन समारोह समिति (JCCIC) के कार्यक्रम में परिवार, उपराष्ट्रपति, और विशिष्ट अतिथियों के साथ यूएस कैपिटल के स्टैच्यूरी हॉल जाएंगे।

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Aghori aur Mahakumbh Mela – अघोरी बनने के लिए तीन कठिन परीक्षाएं: जान की बाजी लगाने के लिए रहना पड़ता है तैयार https://chandigarhnews.net/aghori-aur-mahakumbh-mela/ https://chandigarhnews.net/aghori-aur-mahakumbh-mela/#respond Mon, 20 Jan 2025 12:00:24 +0000 https://chandigarhnews.net/?p=56755 Aghori aur Mahakumbh Mela – अघोरी बनने के लिए तीन कठिन परीक्षाएं: जान की बाजी लगाने के लिए रहना पड़ता

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Aghori aur Mahakumbh Mela – अघोरी बनने के लिए तीन कठिन परीक्षाएं: जान की बाजी लगाने के लिए रहना पड़ता है तैयार

Aghori aur Mahakumbh Mela – अघोरी साधु हिंदू धर्म में एक रहस्यमयी और रहस्यपूर्ण संप्रदाय के रूप में जाने जाते हैं। इन साधुओं का जीवन एक तपस्वी यात्रा है, जिसमें शारीरिक और मानसिक रूप से कठोरता से गुजरना पड़ता है।

अघोरी बनने के लिए शिष्य को तीन प्रमुख दीक्षाओं से गुजरना पड़ता है। हर दीक्षा एक नई चुनौती होती है और इनका उद्देश्य शिष्य को मानसिक, शारीरिक, और आध्यात्मिक दृष्टि से पूरी तरह से तैयार करना है।

आइए जानें उन तीन महत्वपूर्ण दीक्षाओं के बारे में, जिनके बाद ही कोई व्यक्ति अघोरी बन सकता है:

हरित दीक्षा

हरित दीक्षा अघोरी बनने की पहली प्रक्रिया है। इस दीक्षा में शिष्य को गुरु मंत्र दिया जाता है। यह मंत्र बहुत ही शक्तिशाली होता है और शिष्य को इसे नियमित रूप से जाप करना होता है। मंत्र का जाप शिष्य की मानसिक शक्ति को मजबूत करता है और वह आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त करता है।

इस दीक्षा से शिष्य के भीतर एकाग्रता और ध्यान की क्षमता विकसित होती है, जो आगे की कठोर साधना के लिए आवश्यक है। इस दीक्षा के बाद शिष्य को गहन साधना की दिशा में मार्गदर्शन मिलता है।

शिरीन दीक्षा

शिरीन दीक्षा दूसरी महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जिसमें शिष्य को तंत्र साधना के गहरे रहस्यों से अवगत कराया जाता है। इस दीक्षा में शिष्य को श्मशान में रहकर तपस्या करनी होती है।

श्मशान में रहते हुए शिष्य को न केवल भौतिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, बल्कि मानसिक रूप से भी उसे मजबूती से लड़ने की क्षमता प्राप्त होती है।

श्मशान की परिस्थितियों में सर्दी, गर्मी और बारिश जैसी कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। इस दीक्षा के दौरान शिष्य को आत्म-नियंत्रण और मानसिक स्थिरता की आवश्यकता होती है।

रंभत दीक्षा

रंभत दीक्षा अघोरी बनने की सबसे कठिन और अंतिम दीक्षा है। इस दीक्षा में शिष्य को अपनी पूरी जिंदगी और मृत्यु का अधिकार गुरु को सौंपना होता है। यह दीक्षा केवल उन साधकों को दी जाती है, जिन्होंने पहले दो दीक्षाओं में सफलता प्राप्त की है और जिन्होंने गुरु पर पूर्ण विश्वास और समर्पण दर्शाया है।

इस दीक्षा का उद्देश्य शिष्य को पूरी तरह से गुरु के आदेशों का पालन करने योग्य बनाना है। शिष्य को किसी भी प्रश्न या संकोच के बिना गुरु के आदेशों का पालन करना होता है, चाहे वह जीवन या मृत्यु से संबंधित हो।

निष्कर्ष

अघोरी बनने की प्रक्रिया एक लंबी और कठिन यात्रा है, जिसमें शिष्य को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से तैयार किया जाता है। इन तीन कठिन दीक्षाओं के बाद ही कोई व्यक्ति अघोरी बनने के योग्य हो सकता है।

अघोरियों का जीवन उनके अनुशासन, तपस्या और समर्पण का प्रतीक होता है, जो उन्हें अन्य साधुओं से विशिष्ट बनाता है। उनकी दुनिया गुप्त और रहस्यमयी है, और जनमानस में उनकी जिज्ञासा सदैव बनी रहती है।

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Naga Sadhu in Mahakumbh 2025 – ठंड में बिना कपड़ों के रहने का रहस्य https://chandigarhnews.net/naga-sadhu-in-mahakumbh-2025/ https://chandigarhnews.net/naga-sadhu-in-mahakumbh-2025/#respond Mon, 20 Jan 2025 11:45:23 +0000 https://chandigarhnews.net/?p=56754 Naga Sadhu in Mahakumbh 2025 – ठंड में बिना कपड़ों के रहने का रहस्य Naga Sadhu in Mahakumbh 2025 –

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Naga Sadhu in Mahakumbh 2025 – ठंड में बिना कपड़ों के रहने का रहस्य

Naga Sadhu in Mahakumbh 2025 – नागा साधुओं को देखकर यह सवाल उठता है कि वे कड़ाके की ठंड में भी बिना कपड़ों के कैसे रह पाते हैं? यह अद्भुत क्षमता सदियों से लोगों को हैरान करती आई है।

वास्तव में, ये साधु अपनी शारीरिक और मानसिक अनुशासन के माध्यम से ठंड को सहजता से सहन करते हैं। आइए जानें कि उनकी यह शक्ति कैसे काम करती है।

अग्नि साधना: शरीर के अंदर की आग

नागा साधुओं की सबसे बड़ी ताकत उनकी अग्नि साधना है। वे अपने शरीर के भीतर अग्नि तत्व को सक्रिय करने के लिए विशेष ध्यान तकनीकों का पालन करते हैं।

इस साधना से शरीर में आंतरिक गर्मी उत्पन्न होती है, जो ठंड के बावजूद उन्हें गर्म रखती है। ध्यान में गहरी एकाग्रता से उनका शरीर प्राकृतिक ऊर्जा को अपने भीतर संचित कर लेता है, जो कड़ाके की ठंड में भी उन्हें गरम रखती है।

नाड़ी शोधन: प्राणायाम का चमत्कार

नाड़ी शोधन (प्राणायाम) एक प्राचीन योग तकनीक है जो शरीर में वायु प्रवाह को संतुलित करती है। नागा साधु इस तकनीक का नियमित अभ्यास करते हैं, जिससे उनका शरीर अपने तापमान को नियंत्रित कर सकता है।

नाड़ी शोधन से प्राण ऊर्जा (वायुमंडलीय जीवन शक्ति) शरीर में प्रवाहित होती है, जिससे वे ठंड के प्रभाव से बच पाते हैं। यह साधना उन्हें मानसिक शांति और शारीरिक संतुलन बनाए रखने में मदद करती है।

राख का कवच: प्राकृतिक इन्सुलेटर

आपने देखा होगा कि नागा साधु अपने शरीर पर राख लगाते हैं। यह राख एक प्राकृतिक इन्सुलेटर की तरह काम करती है। राख में ऐसे खनिज तत्व होते हैं जैसे कैल्शियम, फॉस्फोरस और पोटेशियम, जो शरीर को गर्म रखने में मदद करते हैं।

यह राख शरीर से नकारात्मक ऊर्जा को भी निकालने में मदद करती है, और शरीर को ठंडी हवाओं से बचाने के लिए एक सुरक्षा कवच का काम करती है।

जीवनशैली और अनुशासन

नागा साधुओं का जीवन अत्यंत अनुशासित और साधना से भरा हुआ होता है। वे प्रतिदिन योग, ध्यान और प्राणायाम का अभ्यास करते हैं। उनकी यह जीवनशैली उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से मजबूत बनाती है, जिससे वे कठिनतम परिस्थितियों में भी अपने शरीर और मस्तिष्क को नियंत्रण में रख पाते हैं। यह अनुशासन उन्हें बाहरी ठंड और आंतरिक उथल-पुथल से मुक्त रखता है।

मन की शक्ति

नागा साधुओं का विश्वास है कि मन की शक्ति किसी भी शारीरिक संकट से बड़ी होती है। वे अपने मन और मानसिक स्थितियों पर पूर्ण नियंत्रण रखते हैं।

उनका मानना है कि मन की शक्ति के माध्यम से वे अपने शरीर के तापमान को नियंत्रित कर सकते हैं। यह मानसिक शक्ति ही उन्हें कड़ाके की ठंड में निर्वस्त्र रहने की क्षमता प्रदान करती है।

निष्कर्ष:

नागा साधुओं की यह अद्भुत शक्ति केवल शारीरिक या मानसिक ही नहीं, बल्कि एक गहरे और निरंतर साधना का परिणाम है। उनकी अग्नि साधना, प्राचीन योग तकनीकों, जीवनशैली, और मानसिक शक्ति का संयोजन उन्हें ठंड जैसे तत्वों से लड़ने की अद्वितीय क्षमता प्रदान करता है।

महाकुंभ 2025 में इस शक्ति का प्रदर्शन करते हुए, नागा साधु अपनी साधना और अनुशासन के माध्यम से दुनिया को यह दिखाते हैं कि शारीरिक सीमा केवल मानसिक दृढ़ता के आगे कमजोर होती है।

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Maha Kumbh Mela aur Ganga Snan – महाकुंभ 2025 और गंगा स्नान: धार्मिक, आध्यात्मिक और वैज्ञानिक पक्ष https://chandigarhnews.net/maha-kumbh-mela-aur-ganga-snan/ https://chandigarhnews.net/maha-kumbh-mela-aur-ganga-snan/#respond Mon, 20 Jan 2025 11:30:23 +0000 https://chandigarhnews.net/?p=56753 Maha Kumbh Mela aur Ganga Snan – महाकुंभ 2025 और गंगा स्नान: धार्मिक, आध्यात्मिक और वैज्ञानिक पक्ष Maha Kumbh Mela

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Maha Kumbh Mela aur Ganga Snan – महाकुंभ 2025 और गंगा स्नान: धार्मिक, आध्यात्मिक और वैज्ञानिक पक्ष

Maha Kumbh Mela aur Ganga Snan – प्रयागराज महाकुंभ 2025 का आयोजन एक ऐतिहासिक और धार्मिक घटना है, जिसे लाखों श्रद्धालु अपने जीवन के सबसे महत्वपूर्ण अनुभव के रूप में मानते हैं।

यह महाकुंभ न केवल धार्मिक, आध्यात्मिक, और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसमें छिपे वैज्ञानिक तथ्यों ने भी इसे एक अनूठा अवसर बना दिया है।

2025 का महाकुंभ 13 जनवरी से शुरू हुआ है, और इस बार संगम की त्रिवेणी, जिसमें गंगा, यमुना और सरस्वती नदियां मिलती हैं, विशेष महत्व रखता है। आइए जानें इस आयोजन के विभिन्न पहलुओं को:

धार्मिक पक्ष:

महाकुंभ का धार्मिक महत्व प्राचीन हिंदू ग्रंथों और कथाओं से जुड़ा हुआ है।

समुद्र मंथन और अमृत कथा: पौराणिक कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान देवताओं और असुरों के बीच अमृत कलश को लेकर संघर्ष हुआ था। अमृत की कुछ बूंदें चार स्थानों पर गिरीं — हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन, और नासिक। इन्हीं स्थानों पर महाकुंभ का आयोजन होता है, और इन्हें अत्यंत पवित्र माना जाता है।

पवित्र स्नान: महाकुंभ के दौरान त्रिवेणी संगम में स्नान को पापों का नाश करने और मोक्ष प्राप्ति का साधन माना जाता है। यह विश्वास किया जाता है कि इस पवित्र स्नान से जीवन के सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं और आत्मा शुद्ध होती है।

विशेष तिथियां: महाकुंभ के दौरान ग्रहों और नक्षत्रों की विशेष स्थिति धार्मिक अनुष्ठानों के लिए शुभ मानी जाती है। इन तिथियों पर संगम पर स्नान, पूजा और दान करना पुण्य प्रदान करता है।

आध्यात्मिक पक्ष:

महाकुंभ का आध्यात्मिक पक्ष अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह एक ऐसा अवसर होता है, जो लोगों को आत्मा की शुद्धि और आध्यात्मिक विकास की ओर प्रेरित करता है।

योग और ध्यान: महाकुंभ में साधु-संत, महात्मा और योगी एकत्र होते हैं, और विभिन्न योग और ध्यान सत्र आयोजित किए जाते हैं। इन सत्रों में हिस्सा लेने से मानसिक और आत्मिक शांति प्राप्त होती है। महाकुंभ आत्मा की शुद्धि और शांति का प्रतीक बनकर श्रद्धालुओं को जीवन के वास्तविक उद्देश्य को समझने की प्रेरणा देता है।

मानवता का एकीकरण: महाकुंभ जाति, धर्म और भौगोलिक सीमाओं से परे जाकर मानवता के एकीकरण का संदेश देता है। यह आयोजन व्यक्ति को अध्यात्म के मार्ग पर चलने और जीवन के उच्चतर उद्देश्य को समझने का अवसर प्रदान करता है।

वैज्ञानिक पक्ष:

महाकुंभ न केवल धार्मिक या आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसमें कई वैज्ञानिक पक्ष भी जुड़े हैं।

खगोलशास्त्र और ग्रहों की स्थिति: महाकुंभ की तिथियां विशेष खगोलीय घटनाओं के आधार पर निर्धारित की जाती हैं। सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति की स्थिति इस आयोजन के समय को तय करती है, जिससे पर्यावरणीय ऊर्जा में सकारात्मक बदलाव आता है।

जल की शुद्धता: वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार, महाकुंभ के दौरान गंगा और अन्य पवित्र नदियों का जल स्वाभाविक रूप से शुद्ध और रोगनाशक गुणों से भरपूर होता है। इन नदियों के जल में बैक्टीरिया-रोधी तत्व होते हैं, जो इसे प्राकृतिक रूप से शुद्ध बनाते हैं।

स्वास्थ्य और स्वच्छता: महाकुंभ के दौरान स्वास्थ्य सेवाओं और स्वच्छता पर विशेष ध्यान दिया जाता है। लाखों श्रद्धालुओं की देखभाल और स्वच्छता बनाए रखना वैज्ञानिक दृष्टिकोण से एक बड़ी चुनौती है, लेकिन यह आयोजन इसे सफलतापूर्वक संपन्न करता है।

मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य: महाकुंभ में आयोजित किए जाने वाले योग, ध्यान और प्राचीन वैदिक अनुष्ठान मानसिक शांति और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी होते हैं। ये गतिविधियां शरीर और मन को स्वस्थ बनाती हैं और श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक उन्नति की ओर प्रेरित करती हैं।

निष्कर्ष:

महाकुंभ 2025 एक ऐसा अवसर है जो न केवल भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर को प्रस्तुत करता है, बल्कि यह जीवन की वास्तविकता, आध्यात्मिकता और विज्ञान का समागम भी है। यह आयोजन श्रद्धालुओं को पवित्रता, शांति और स्वास्थ्य की ओर मार्गदर्शन करता है और मानवता के एकीकरण का संदेश देता है।

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Prayagraj Kumbh Mela 1954 -प्रयागराज कुंभ मेला 1954: इतिहास और विशेषताएं https://chandigarhnews.net/prayagraj-kumbh-mela-1954/ https://chandigarhnews.net/prayagraj-kumbh-mela-1954/#respond Mon, 20 Jan 2025 11:15:22 +0000 https://chandigarhnews.net/?p=56752 Prayagraj Kumbh Mela 1954 –प्रयागराज कुंभ मेला 1954: इतिहास और विशेषताएं Prayagraj Kumbh Mela 1954 -1954 का प्रयागराज कुंभ मेला

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Prayagraj Kumbh Mela 1954 –प्रयागराज कुंभ मेला 1954: इतिहास और विशेषताएं

Prayagraj Kumbh Mela 1954 -1954 का प्रयागराज कुंभ मेला भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, क्योंकि यह स्वतंत्रता के बाद पहला कुंभ मेला था। यह आयोजन न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण था, बल्कि यह भारतीय राजनीति और समाज में भी एक गहरी छाप छोड़ गया।

इस मेला ने सुरक्षा व्यवस्था, व्यवस्थाओं और संसाधनों की चुनौतियों को भी उजागर किया, खासकर उस समय जब 5 मिलियन से अधिक तीर्थयात्री शामिल हुए थे।

मेला और राजनेताओं की उपस्थिति

1954 का कुंभ मेला भारतीय राजनीति के लिए भी एक बड़ा अवसर बन गया था। यह स्वतंत्रता के बाद पहला मौका था जब इतने बड़े पैमाने पर तीर्थयात्रियों ने इस मेला में भाग लिया।

कई प्रमुख राजनेताओं ने इस अवसर का उपयोग जनता से संपर्क स्थापित करने और अपनी राजनीतिक पकड़ मजबूत करने के लिए किया। इलाहाबाद (अब प्रयागराज) शहर में 40-दिनों का यह आयोजन हुआ, और इस दौरान सुरक्षा की स्थिति और व्यवस्थाएं बेहद कमजोर थीं।

कुंभ मेला भगदड़ (3 फरवरी 1954)

3 फरवरी 1954 को हुए इस मेले में मचने वाली भगदड़ ने कई जिंदगियों को लील लिया। यह घटना मौनी अमावस्या के मुख्य स्नान के समय हुई, जब लाखों तीर्थयात्री संगम में स्नान के लिए पहुंचे थे। जब बड़ी संख्या में लोग एक जगह एकत्र हुए, तो सुरक्षा व्यवस्था की कमी और स्थान की कमी के कारण भगदड़ मच गई।

आंकड़ों के अनुसार:

  • 800 से अधिक लोग मारे गए (द गार्जियन के अनुसार)।
  • 350 लोग कुचले गए और डूब गए, 200 लोग लापता हो गए, और 2,000 से अधिक घायल हुए (टाइम के अनुसार)।
  • 500 से अधिक लोग मारे गए (लॉ एंड ऑर्डर इन इंडिया के अनुसार)।

घटना के बाद की प्रतिक्रियाएं और जांच

घटना के बाद, प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने राजनेताओं और वीआईपी को मेले में जाने से बचने की सलाह दी। इसके बाद सरकार ने इस घटना की जांच के लिए एक न्यायिक जांच आयोग का गठन किया, जिसका नेतृत्व न्यायमूर्ति कमला कांत वर्मा ने किया।

जांच आयोग की सिफारिशों के आधार पर, भविष्य के आयोजनों की बेहतर योजना और प्रबंधन की दिशा में सुधार की आवश्यकता पर जोर दिया गया।

राजनीतिक और प्रशासनिक लापरवाही

कुंभ मेला की त्रासदी के बाद, सरकार ने लापरवाही के आरोपों से खुद को मुक्त कर दिया और पीड़ित परिवारों को कोई मुआवजा नहीं दिया गया। हालांकि, जनता और मीडिया ने इसे एक गंभीर प्रशासनिक चूक के रूप में देखा और इस घटना ने भविष्य में आयोजन की सुरक्षा और व्यवस्थाओं के महत्व को उजागर किया।

कला और साहित्य में प्रभाव

इस त्रासदी ने भारतीय साहित्य और कला को भी प्रभावित किया। लेखक विक्रम सेठ ने अपने उपन्यास ए सूटेबल बॉय में इस घटना का संदर्भ दिया है, जहां इस हादसे को “कुंभ मेला” के बजाय “पुल मेला” कहा गया है।

इस उपन्यास का 2020 में टेलीविजन रूपांतरण भी हुआ, जिसमें इस घटना को “पुल मेला” के रूप में दर्शाया गया। इसके अलावा, लेखक कलकूट (समरेश बसु) ने भी इस त्रासदी को अपने उपन्यास में उजागर किया और बाद में इस पर एक फिल्म भी बनी।

कुंभ मेला के दौरान असुविधाएं और हालात

इस कुंभ मेला के दौरान व्यवस्थाओं की भारी कमी थी। गंगा के तट का टूटना और अस्थायी शिविरों में पानी भरने से अफवाहों और घबराहट का माहौल बन गया। लोग घबराहट में एक-दूसरे को धक्का देने लगे, जिसके कारण भगदड़ मच गई। एक पुरानी वीडियो फुटेज में इस मेला की भव्यता को देखा जा सकता है, जिसमें भक्तों की भीड़ और हाथियों की सवारी जैसे दृश्य दिखाई देते हैं।

1954 के कुंभ मेला की त्रासदी ने न केवल भारतीय प्रशासन को चेतावनी दी, बल्कि यह भविष्य के आयोजनों के लिए एक गहरी सीख भी रही, जिससे व्यवस्थाओं और सुरक्षा में सुधार की दिशा में कदम उठाए गए।

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Mahila Naga Sadhu in Kumbh Mela – महाकुंभ में महिला नागा साधुओं की उपस्थिति: उनके जीवन और महत्व पर एक नजर https://chandigarhnews.net/mahila-naga-sadhu-in-kumbh-mela/ https://chandigarhnews.net/mahila-naga-sadhu-in-kumbh-mela/#respond Mon, 20 Jan 2025 11:00:22 +0000 https://chandigarhnews.net/?p=56751 Mahila Naga Sadhu in Kumbh Mela – महाकुंभ में महिला नागा साधुओं की उपस्थिति: उनके जीवन और महत्व पर एक

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Mahila Naga Sadhu in Kumbh Mela – महाकुंभ में महिला नागा साधुओं की उपस्थिति: उनके जीवन और महत्व पर एक नजर

Mahila Naga Sadhu in Maha Kumbh Mela – महिला नागा साधु, जो भगवान शिव को अपना आराध्य मानते हुए संसार के मोह-माया से मुक्त हो जाती हैं, हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण और प्रतिष्ठित स्थान रखती हैं।

हालांकि यह परंपरा पुरुषों तक ही सीमित मानी जाती रही है, लेकिन अब महिलाएं भी इस कठिन और तपस्वी जीवन को अपनाती हैं। महिला नागा साधुओं की उपस्थिति को महाकुंभ जैसे बड़े धार्मिक आयोजनों में शुभ माना जाता है, और उनके जीवन के कुछ पहलु बेहद प्रेरणादायक होते हैं।

महिला नागा साधु कौन होती हैं?

महिला नागा साधु वे महिलाएं होती हैं जिन्होंने संसार के भौतिक सुखों को त्यागकर भगवान शिव को अपना आराध्य माना है। इन साधुओं का जीवन तपस्या, साधना और आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर होता है।

महिला नागा साधु बनने की प्रक्रिया और कठिनाई

महिला नागा साधु बनने की प्रक्रिया बेहद कठिन और कठोर होती है, जिसमें कई महत्वपूर्ण चरण होते हैं:

ब्रह्मचर्य का पालन: महिला को कम से कम 6 से 12 साल तक ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है। यह समय तपस्या और साधना का होता है।

अखाड़े से जुड़ना: महिला को किसी अखाड़े से जुड़ना होता है। खासकर ‘दशनाम संन्यासिनी अखाड़ा’ महिला नागा साधुओं के लिए प्रमुख है।

पिंडदान: महिला को अपना पिंडदान करना होता है, जो कि उनके पिछले जीवन से पूर्णत: विमुख होने की प्रक्रिया है।

बाल मुंडन: महिला को अपने बाल मुंडवाने होते हैं, जो साधना के प्रतीक माने जाते हैं।

कठोर साधना: महिला नागा साधुओं को कठिन साधना करनी होती है, जिसमें प्रातःकालीन स्नान, भगवान शिव की पूजा, और तंत्र साधना शामिल हैं।

महिला नागा साधुओं को पुरुष साधुओं की तुलना में अधिक कठिन तपस्या करनी पड़ती है, क्योंकि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, महिलाओं को रजस्वला अवस्था के दौरान कुछ कार्यों से दूर रहना होता है।

महिला नागा साधुओं का जीवन

महिला नागा साधुओं का जीवन बहुत ही साधारण और अनुशासित होता है। वे भौतिक सुखों से दूर रहते हुए अपनी साधना पर पूरी तरह से ध्यान केंद्रित करती हैं। उनका जीवन कुछ इस प्रकार होता है:

वस्त्र: महिला नागा साधु केवल गेरुए रंग का एक साधारण कपड़ा पहनती हैं। वे सिला हुआ कपड़ा नहीं पहनतीं, और यह उनके तपस्वी जीवन का प्रतीक है।

आहार: वे बहुत साधारण भोजन करती हैं और अक्सर उपवास करती हैं, ताकि वे अपनी साधना में पूरी तरह से ध्यान लगा सकें।

साधना: महिला नागा साधु नियमित रूप से ध्यान, योग और तंत्र साधना करती हैं, जो उन्हें आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में प्रगति करने में मदद करता है।

महिला नागा साधुओं का महत्व

महिला नागा साधुओं का हिंदू धर्म में गहरा महत्व है। उनकी तपस्या, अनुशासन और आध्यात्मिक ऊंचाई उन्हें विशेष बनाती है। महाकुंभ जैसे आयोजन में उनकी उपस्थिति को शुभ माना जाता है। यह न केवल उनके आत्म-निर्भर और शक्तिशाली जीवन का प्रतीक है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि महिलाएं भी अब इस कठिन जीवन के मार्ग पर चल सकती हैं।

महिला नागा साधुओं की उपस्थिति महाकुंभ में एक प्रेरणा का स्रोत है, जो महिलाओं के धार्मिक और आध्यात्मिक योगदान को सम्मानित करती है। उनकी यात्रा न केवल आध्यात्मिक उन्नति की ओर है, बल्कि यह समाज में महिलाओं की भूमिका को भी महत्व देती है।

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Naga Sadhu in Kumbh Mela – नागा साधुओं की उत्पत्ति: रहस्य और इतिहास https://chandigarhnews.net/naga-sadhu-in-kumbh-mela/ https://chandigarhnews.net/naga-sadhu-in-kumbh-mela/#respond Mon, 20 Jan 2025 10:45:22 +0000 https://chandigarhnews.net/?p=56750 Naga Sadhu in Kumbh Mela – नागा साधुओं की उत्पत्ति: रहस्य और इतिहास Naga Sadhu in Kumbh Mela – नागा

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Naga Sadhu in Kumbh Mela – नागा साधुओं की उत्पत्ति: रहस्य और इतिहास

Naga Sadhu in Kumbh Mela – नागा साधु एक प्राचीन संत संप्रदाय का हिस्सा हैं, जिनकी उत्पत्ति से जुड़े कुछ रोचक और ऐतिहासिक पहलू हैं। इन साधुओं की परंपरा वेद व्यास से शुरू होकर शंकराचार्य और उसके बाद अखाड़ों के गठन तक पहुंची। आइए जानते हैं नागा साधुओं की उत्पत्ति के बारे में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य:

नागा साधुओं की ऐतिहासिक उत्पत्ति

कुछ विद्वानों का मानना है कि नागा साधुओं की परंपरा प्राचीन काल से ही अस्तित्व में थी। सिंधु घाटी की मोहनजोदड़ो की खुदाई में ऐसी मूर्तियां पाई गई हैं, जो पशुपति रूप में दिगंबर तपस्वियों का प्रतीक मानी जाती हैं।

यही वे तपस्वी थे, जिन्हें वेदों में वर्णित किया गया था और जिनकी पूजा भगवान शिव से जुड़ी हुई थी। यह भी माना जाता है कि जब सिकंदर महान भारत आया, तो उसने दिगंबर साधुओं को देखा था, जो उस समय भी तपस्या में लीन थे।

नागा साधु और जैन परंपरा का कनेक्शन

नागा साधु और जैन धर्म के दिगंबर साधुओं में एक समानता देखी जाती है। दोनों ही परंपराओं में नग्नता (दिगंबर) और तपस्या के कठोर साधनाओं का पालन किया जाता है। इसलिए यह माना जाता है कि नागा संप्रदाय और जैन परंपरा का संबंध एक ही प्राचीन परंपरा से है।

नागा शब्द की उत्पत्ति

नागा शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के ‘नाग’ से हुई है, जिसका अर्थ ‘पहाड़’ या ‘हिमालय’ होता है। यह शब्द उन लोगों के लिए प्रयुक्त होता था जो पर्वतीय इलाकों में रहते थे और जिन्होंने शास्त्रों के अनुसार तपस्या और धार्मिक कार्यों में भाग लिया। कच्छारी भाषा में ‘नागा’ का अर्थ ‘बहादुर लड़ाकू’ भी है, जो इन साधुओं के शस्त्रधारी स्वरूप को दर्शाता है।

नागा साधुओं की शिक्षा और दीक्षा

नागा साधु बनने की प्रक्रिया में कठोर तपस्या और शिक्षा की आवश्यकता होती है। सबसे पहले, इन्हें ब्रह्मचारी बनने की शिक्षा दी जाती है, इसके बाद महापुरुष दीक्षा होती है। इस प्रक्रिया के तहत उन्हें यज्ञोपवीत, पिंडदान, दिगंबर और श्री दिगंबर जैसी परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है। दिगंबर नागा एक लंगोटी पहन सकते हैं, जबकि श्री दिगंबर को निर्वस्त्र रहना होता है और उनकी इंद्रियों को भी तोड़ दिया जाता है।

नागा साधुओं के नाम और उपाधियाँ 

भारत के विभिन्न कुंभ मेलों में नागा साधुओं को विभिन्न उपाधियाँ दी जाती हैं:

  • प्रयागराज में उन्हें ‘नागा’ कहा जाता है।
  • उज्जैन में इनकी उपाधि ‘खूनी नागा’ होती है।
  • हरिद्वार में इन्हें ‘बर्फानी नागा’ कहा जाता है।
  • नासिक में इन्हें ‘खिचड़िया नागा’ कहा जाता है।

इन उपाधियों का निर्धारण स्थान और साधु के तपस्या के अनुसार किया जाता है।

नागा साधु कहाँ रहते हैं?

नागा साधु आमतौर पर अखाड़ों के आश्रम और मंदिरों में रहते हैं। कुछ साधु हिमालय की गुफाओं में तपस्या करते हैं, जबकि कुछ गांवों में अपनी यात्रा के दौरान झोपड़ियाँ बनाकर धुनी रमाते हैं।

नागा बेड़ा: एक ऐतिहासिक परंपरा

नागा साधु के अखाड़ों की परंपरा मुग़ल काल से पहले भी अस्तित्व में थी, हालांकि तब इन्हें ‘अखाड़ा’ के रूप में नहीं बल्कि ‘बेड़ा’ के रूप में जाना जाता था। ‘बेड़ा’ शब्द साधुओं के जत्थे के लिए था और इनमें पीर और तद्वीर जैसे अलग-अलग पद होते थे। मुग़ल काल में ‘अखाड़ा’ शब्द का चलन हुआ और तब से यह शब्द लोकप्रिय हुआ।

नागा साधुओं की भूमिका

नागा साधु धर्म की रक्षा के लिए शस्त्रधारी होते हैं। इन साधुओं को हर प्रकार के शस्त्र चलाने की शिक्षा दी जाती है और वे किसी ब्लैक कमांडो की तरह कठिन परिस्थितियों में भी जीने की क्षमता रखते हैं। इनकी तपस्या और शस्त्र कौशल भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है।

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