Guru Gobind Singh Sikh Dharam ke Dasve Guru

Guru Gobind Singh Sikh Dharam ke Dasve Guru – गुरु गोविंद सिंह: सिख धर्म के दसवें गुरु और उनकी महान विरासत

Guru Gobind Singh Sikh Dharam ke Dasve Guru – गुरु गोविंद सिंह: सिख धर्म के दसवें गुरु और उनकी महान विरासत

सिख धर्म के दसवें गुरु, गुरु गोविंद सिंह जी, एक महान योद्धा, संत, और धर्मरक्षक थे। उनकी वीरता, दूरदर्शिता और बलिदान ने न केवल सिख पंथ को मजबूत किया बल्कि उन्हें दुनिया के महानतम नेताओं की श्रेणी में ला खड़ा किया। उनके शहीदी दिवस पर, हम उनकी शिक्षाओं और योगदान को याद करते हैं।

खालसा पंथ की स्थापना

1699 में, वैशाखी के अवसर पर, गुरु गोविंद सिंह जी ने आनंदपुर साहिब में खालसा पंथ की स्थापना की। इस ऐतिहासिक क्षण में उन्होंने सिख समुदाय को एक नई पहचान और दिशा दी। धर्मसभा में उन्होंने पांच साहसी पुरुषों को “पंज प्यारे” के रूप में चुना, जिन्होंने निस्वार्थ सेवा और बलिदान का प्रतीक बनकर इतिहास रच दिया।

खालसा पंथ के निर्माण के साथ, गुरु गोविंद सिंह ने सिख धर्म में “पांच ककार”—केश, कंघा, कृपाण, कच्छ, और कड़ा—को अनिवार्य किया। ये पांच प्रतीक सिख धर्म की मर्यादा, साहस और अनुशासन का प्रतीक हैं।

गुरु गोविंद सिंह की शिक्षाएं

गुरु गोविंद सिंह ने अपनी शिक्षाओं के माध्यम से समाज को नई दिशा प्रदान की। उनकी मुख्य शिक्षाएं निम्नलिखित हैं:

  • धरम दी किरत करनी: मेहनत और ईमानदारी से आजीविका कमाना।
  • दसवंड देना: अपनी आय का दसवां हिस्सा जरूरतमंदों और धर्म की सेवा में दान करना।
  • अभिमान से बचना: जाति, कुल, धन, और जवानी का घमंड न करना।
  • गुरुबानी कंठ करना: गुरुबानी का अध्ययन और स्मरण करना।
  • सत्कर्मों का पालन: सच्चाई, साहस और सेवा का जीवन जीना।

गुरु गोविंद सिंह का बलिदान

गुरु गोविंद सिंह के जीवन का हर पल बलिदान और संघर्ष से भरा हुआ था। 1704 में आनंदपुर साहिब की घेराबंदी के दौरान उन्होंने अपने परिवार और अनुयायियों के साथ साहसिक प्रतिरोध किया। उनके चारों पुत्रों और माता गुजरी जी ने धर्म और मानवता के लिए अपने प्राणों की आहुति दी।

1708 में नांदेड़ में, वे मुगलों के कुटिल षड्यंत्र का शिकार हुए और शहीद हो गए। उनके बलिदान ने यह संदेश दिया कि धर्म और न्याय के लिए जीना और मरना ही सच्ची मानवता है।

गुरु गोविंद सिंह की विरासत

गुरु गोविंद सिंह ने गुरु ग्रंथ साहिब को सिखों का अंतिम गुरु घोषित किया और सिख धर्म को आत्मनिर्भर और संगठित बनाया। उनकी वीरता और शिक्षाएं आज भी सिख समुदाय को प्रेरणा देती हैं।

निष्कर्ष

गुरु गोविंद सिंह जी का जीवन न केवल सिख धर्म बल्कि पूरी मानवता के लिए प्रेरणादायक है। उनका शहीदी दिवस हमें उनके आदर्शों और शिक्षाओं का पालन करने की याद दिलाता है। उनका बलिदान यह सिखाता है कि सच्चाई, न्याय और धर्म की राह में कोई भी बलिदान बड़ा नहीं होता।

वाहे गुरु जी का खालसा, वाहे गुरु जी की फतेह!

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