Maha Kumbh Mahila Naga Sadhu Story – कैसे बनती हैं महिला नागा साधु?
Maha Kumbh Mahila Naga Sadhu Story – महाकुंभ में महिला नागा साधुओं को लेकर हमेशा एक विशेष उत्सुकता बनी रहती है। यह जानना रोचक है कि कोई महिला नागा साधु कैसे बनती है और उनका जीवन कैसा होता है।
आमतौर पर कुंभ या महाकुंभ में महिला नागा साधु दिखाई नहीं देती थीं, लेकिन हाल के वर्षों में विशेष रूप से प्रयागराज महाकुंभ में महिलाओं के अखाड़े का गठन हुआ है और उनकी उपस्थिति बढ़ी है। इस बार महिला नागा साधु अपने स्वयं के शिविरों के साथ दिखाई देंगी।
नागा साधु बनने की प्रक्रिया:
महिला नागा साधु बनने की प्रक्रिया अत्यंत कठिन और दीक्षा आधारित होती है। यह प्रक्रिया कुछ इस प्रकार होती है:
दीक्षा लेने की प्रक्रिया:
महिला नागा संन्यासिन बनने के लिए उसे जूना अखाड़े के किसी महिला या पुरुष संत से दीक्षा लेनी होती है।
संन्यास लेने से पहले, महिला के परिवार और उसके पिछले जन्म की जांच की जाती है, यह सुनिश्चित किया जाता है कि उसने संसार से मोह त्याग दिया है।
महिला को 6 माह तक ब्रह्मचर्य और यम-नियम का पालन करना होता है, जिससे आचार्य संतुष्ट होते हैं और दीक्षा दी जाती है।
दीक्षा के बाद:
महिला अपने सांसारिक वस्त्र उतारकर पीला वस्त्र धारण करती है।
फिर वह मुंडन कराती है और अपना पिंडदान स्वयं करती है। इसके बाद उसे नदी में स्नान करने के लिए भेजा जाता है।
महिला को 6 से 12 वर्षों तक ध्यान और तपस्या करनी होती है।
पूर्ण दीक्षा:
जब महिला सभी तप और परीक्षाओं को सफलतापूर्वक पार कर लेती है, तो उसे ‘माता’ की उपाधि दी जाती है।
इस उपाधि के बाद, वह महिला संन्यासी अखाड़े की मान्य सदस्य बन जाती है और सभी साधु-संत उसे ‘माता’ कहकर संबोधित करते हैं।
महिला नागा साधु का जीवन:
महिला नागा साधुओं का जीवन अनुशासन और तपस्या से भरा होता है। हालांकि, वे सार्वजनिक रूप से निर्वस्त्र नहीं होतीं, जैसे पुरुष नागा साधु होते हैं। उनके जीवन की विशेषताएं इस प्रकार हैं:
वस्त्र: महिला नागा साधु को एक ही वस्त्र पहनने की अनुमति होती है, जिसे ‘गंती’ कहा जाता है। यह कपड़ा भी सिला हुआ नहीं होता है।
स्नान: कुंभ में स्नान करते समय महिला साधु नग्न स्नान नहीं करतीं। वे गेरुए वस्त्र में ही स्नान करती हैं।
धार्मिक क्रियाएँ: महिला नागा साधु दिनभर भगवान का जाप करती हैं। वे ब्रह्ममुहुर्त में उठकर शिवजी का जाप करती हैं और शाम को दत्तात्रेय भगवान की पूजा करती हैं। दोपहर में भोजन करने के बाद पुनः शिवजी का जाप करती हैं और फिर शयन करती हैं।
अखाड़े में सम्मान: महिला संन्यासिनों को अखाड़े में पूरा सम्मान मिलता है। उनका माई बाड़ा नामक शिविर जूना अखाड़े के पास होता है, जहां वे विशेष ध्यान और तपस्या करती हैं।
महिला नागा साधुओं के अखाड़े:
माई बाड़ा अखाड़ा:
जूना अखाड़े में महिलाएं नागा और मंडलेश्वर पद प्राप्त करती हैं। 2013 में, जूना अखाड़े ने ‘माई बाड़ा’ को दशनाम संन्यासिनी अखाड़ा के रूप में स्थापित किया था।
इस अखाड़े की महिला साधुओं को ‘माई’, ‘अवधूतानी’ या ‘नागिन’ कहा जाता है।
‘माई’ पद पर चुनी गई महिलाएं कुंभ के शाही स्नान के दौरान पालकी में चलती हैं और उनके पास अखाड़े का ध्वज, डंका और दाना रखने की छूट होती है।
विदेशी महिला नागा साधु:
जूना अखाड़े में बड़ी संख्या में विदेशी महिलाएं भी हैं, खासकर यूरोप और नेपाल से। नेपाल में ऊंची जाति की विधवाओं के लिए पुनर्विवाह की अनुमति नहीं होती, इसलिए वे अपने घर लौटने की बजाय साधु बनकर नए जीवन की शुरुआत करती हैं।
इन महिलाओं का नागा साधु बनने का आकर्षण अधिक है, भले ही इसके लिए कठोर तपस्या और तप का पालन करना होता है।
निष्कर्ष:
महिला नागा साधु बनने का मार्ग कठिन और तपस्वी है, लेकिन इसके द्वारा महिलाएं न केवल धार्मिक समर्पण की एक नई परिभाषा स्थापित करती हैं, बल्कि समाज में अपनी पहचान भी बनाती हैं। कुंभ जैसे महापर्व पर इनका विशेष स्थान होता है और उनके जीवन का यह सफर एक अद्वितीय आध्यात्मिक यात्रा के रूप में देखा जाता है।
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