Naga Sadhu in Kumbh Mela

Naga Sadhu in Kumbh Mela – नागा साधुओं की उत्पत्ति: रहस्य और इतिहास

Naga Sadhu in Kumbh Mela – नागा साधुओं की उत्पत्ति: रहस्य और इतिहास

Naga Sadhu in Kumbh Mela – नागा साधु एक प्राचीन संत संप्रदाय का हिस्सा हैं, जिनकी उत्पत्ति से जुड़े कुछ रोचक और ऐतिहासिक पहलू हैं। इन साधुओं की परंपरा वेद व्यास से शुरू होकर शंकराचार्य और उसके बाद अखाड़ों के गठन तक पहुंची। आइए जानते हैं नागा साधुओं की उत्पत्ति के बारे में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य:

नागा साधुओं की ऐतिहासिक उत्पत्ति

कुछ विद्वानों का मानना है कि नागा साधुओं की परंपरा प्राचीन काल से ही अस्तित्व में थी। सिंधु घाटी की मोहनजोदड़ो की खुदाई में ऐसी मूर्तियां पाई गई हैं, जो पशुपति रूप में दिगंबर तपस्वियों का प्रतीक मानी जाती हैं।

यही वे तपस्वी थे, जिन्हें वेदों में वर्णित किया गया था और जिनकी पूजा भगवान शिव से जुड़ी हुई थी। यह भी माना जाता है कि जब सिकंदर महान भारत आया, तो उसने दिगंबर साधुओं को देखा था, जो उस समय भी तपस्या में लीन थे।

नागा साधु और जैन परंपरा का कनेक्शन

नागा साधु और जैन धर्म के दिगंबर साधुओं में एक समानता देखी जाती है। दोनों ही परंपराओं में नग्नता (दिगंबर) और तपस्या के कठोर साधनाओं का पालन किया जाता है। इसलिए यह माना जाता है कि नागा संप्रदाय और जैन परंपरा का संबंध एक ही प्राचीन परंपरा से है।

नागा शब्द की उत्पत्ति

नागा शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के ‘नाग’ से हुई है, जिसका अर्थ ‘पहाड़’ या ‘हिमालय’ होता है। यह शब्द उन लोगों के लिए प्रयुक्त होता था जो पर्वतीय इलाकों में रहते थे और जिन्होंने शास्त्रों के अनुसार तपस्या और धार्मिक कार्यों में भाग लिया। कच्छारी भाषा में ‘नागा’ का अर्थ ‘बहादुर लड़ाकू’ भी है, जो इन साधुओं के शस्त्रधारी स्वरूप को दर्शाता है।

नागा साधुओं की शिक्षा और दीक्षा

नागा साधु बनने की प्रक्रिया में कठोर तपस्या और शिक्षा की आवश्यकता होती है। सबसे पहले, इन्हें ब्रह्मचारी बनने की शिक्षा दी जाती है, इसके बाद महापुरुष दीक्षा होती है। इस प्रक्रिया के तहत उन्हें यज्ञोपवीत, पिंडदान, दिगंबर और श्री दिगंबर जैसी परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है। दिगंबर नागा एक लंगोटी पहन सकते हैं, जबकि श्री दिगंबर को निर्वस्त्र रहना होता है और उनकी इंद्रियों को भी तोड़ दिया जाता है।

नागा साधुओं के नाम और उपाधियाँ 

भारत के विभिन्न कुंभ मेलों में नागा साधुओं को विभिन्न उपाधियाँ दी जाती हैं:

  • प्रयागराज में उन्हें ‘नागा’ कहा जाता है।
  • उज्जैन में इनकी उपाधि ‘खूनी नागा’ होती है।
  • हरिद्वार में इन्हें ‘बर्फानी नागा’ कहा जाता है।
  • नासिक में इन्हें ‘खिचड़िया नागा’ कहा जाता है।

इन उपाधियों का निर्धारण स्थान और साधु के तपस्या के अनुसार किया जाता है।

नागा साधु कहाँ रहते हैं?

नागा साधु आमतौर पर अखाड़ों के आश्रम और मंदिरों में रहते हैं। कुछ साधु हिमालय की गुफाओं में तपस्या करते हैं, जबकि कुछ गांवों में अपनी यात्रा के दौरान झोपड़ियाँ बनाकर धुनी रमाते हैं।

नागा बेड़ा: एक ऐतिहासिक परंपरा

नागा साधु के अखाड़ों की परंपरा मुग़ल काल से पहले भी अस्तित्व में थी, हालांकि तब इन्हें ‘अखाड़ा’ के रूप में नहीं बल्कि ‘बेड़ा’ के रूप में जाना जाता था। ‘बेड़ा’ शब्द साधुओं के जत्थे के लिए था और इनमें पीर और तद्वीर जैसे अलग-अलग पद होते थे। मुग़ल काल में ‘अखाड़ा’ शब्द का चलन हुआ और तब से यह शब्द लोकप्रिय हुआ।

नागा साधुओं की भूमिका

नागा साधु धर्म की रक्षा के लिए शस्त्रधारी होते हैं। इन साधुओं को हर प्रकार के शस्त्र चलाने की शिक्षा दी जाती है और वे किसी ब्लैक कमांडो की तरह कठिन परिस्थितियों में भी जीने की क्षमता रखते हैं। इनकी तपस्या और शस्त्र कौशल भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है।

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