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]]>Prayagraj Kumbh Mela 2025 Information – 2025 में प्रयागराज में आयोजित हो रहे महाकुंभ मेला को लेकर लाखों श्रद्धालु देश-विदेश से पहुंच रहे हैं। यह मेला भारत का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है, जो हर 12 साल में चार प्रमुख स्थानों – प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक, और उज्जैन में आयोजित होता है।
इस मेले का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व अत्यधिक है, और इसे यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में भी शामिल किया गया है। इस बार उत्तर प्रदेश के त्रिवेणी संगम पर आयोजित होने वाला महाकुंभ मेला बेहद खास होगा।
कुंभ स्नान करने से पहले कुछ विशेष नियमों का पालन करना जरूरी है, ताकि स्नान का पुण्य फल प्राप्त हो सके। यह स्नान मोक्ष प्राप्ति का सबसे बड़ा साधन माना जाता है। कुंभ स्नान करते समय आपको कुछ खास बातों का ध्यान रखना होगा, जैसे:
कुंभ मेले में शाही स्नान का खास महत्व है, जो निम्नलिखित तिथियों पर आयोजित होगा:
शाही स्नान के दिन पहले साधु-संतों के स्नान के बाद स्नान करें।
शरीर को अच्छी तरह से साफ करके स्नान करें।
मन को शांत रखें और ध्यान केंद्रित करें।
कम से कम 5 डुबकी लगाएं।
साधु-संतों से पहले स्नान न करें।
स्नान के दौरान साबुन, शैंपू आदि का प्रयोग न करें।
नकारात्मक विचारों से बचें और स्नान के दौरान सिर्फ एक डुबकी न लगाएं।
शाही स्नान के दौरान शुद्धता का विशेष ध्यान रखना चाहिए। स्नान करने से पहले शरीर को अच्छे से साफ करें और स्नान के दौरान मन को शांत रखें। स्नान के बाद दान-पुण्य के कार्य करने से भी पुण्य की प्राप्ति होती है। मंत्रों का जाप करने से मन को शांति मिलती है और पुण्य का संचय होता है।
कुंभ स्नान को मोक्ष प्राप्ति का सर्वोत्तम साधन माना जाता है। कहा जाता है कि कुंभ स्नान से सभी पाप धुल जाते हैं और व्यक्ति को आध्यात्मिक शक्ति मिलती है। यह एक पवित्र अनुष्ठान है, जिसमें भाग लेने से व्यक्ति की मानसिक शांति और जीवन में सकारात्मक बदलाव आते हैं।
कुंभ मेला एक पवित्र धार्मिक अनुभव है, जिसे ध्यान और श्रद्धा से मनाना चाहिए। इन नियमों का पालन करके आप इस अद्भुत यात्रा का पूरा लाभ उठा सकते हैं।
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]]>The post Rules for Mahakumbh Mela – कुंभ में संगम में डुबकी लगाने से पहले जान लें ये 3 महत्वपूर्ण नियम, वरना नहीं मिलेगा पूरा पुण्य appeared first on Chandigarh News.
]]>Rules for Mahakumbh Mela – महाकुंभ 2025 में लाखों श्रद्धालु संगम में स्नान के लिए आते हैं। यह अवसर न केवल धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह एक पवित्र यात्रा भी मानी जाती है, जिससे पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि कुंभ में संगम में स्नान करने से पहले कुछ विशेष नियमों का पालन करना आवश्यक है? अगर इन नियमों का पालन नहीं किया जाता, तो स्नान का पुण्य लाभ अधूरा हो सकता है।
आइए जानें ये नियम:
मान्यता: गृहस्थ व्यक्ति को कुंभ स्नान के दौरान पांच बार डुबकी लगानी चाहिए। यह डुबकी आपके पिताजी, माता जी, गुरु, कुल देवता और स्वयं के लिए होती है। इस प्रकार, प्रत्येक डुबकी एक विशेष उद्देश्य के साथ ली जाती है:
मान्यता: कुंभ मेले में नागा साधुओं को विशेष स्थान प्राप्त होता है। उन्हें सम्मानित संत माना जाता है, और उनका स्थान सर्वोत्तम माना जाता है। इसलिए कभी भी नागा साधु से पहले संगम में स्नान नहीं करना चाहिए। ऐसा करना अपशकुन माना जाता है और यह पुण्य के मार्ग में विघ्न डाल सकता है।
मान्यता: कुंभ स्नान के बाद सूर्य देव को अर्घ्य देना बहुत शुभ माना जाता है। इससे न केवल पापों का नाश होता है, बल्कि जीवन में सफलता और समृद्धि भी आती है। सूर्य को अर्घ्य देने से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है और जीवन के कष्ट दूर होते हैं।
कुंभ मेला सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक और सांस्कृतिक प्रतीक भी है। यहाँ देश-विदेश से लोग एकत्रित होते हैं और एक साथ मिलकर धार्मिक अनुष्ठान करते हैं, जो सामाजिक एकता का प्रतीक है।
कुंभ स्नान एक पवित्र प्रक्रिया है, और यदि आप इन नियमों का पालन करते हैं, तो इसका फल आपको निश्चित रूप से मिलेगा। कुंभ मेला में भाग लेने से पहले इन नियमों को ध्यान में रखें, ताकि आप पूरी श्रद्धा और सम्मान के साथ इस पवित्र अनुष्ठान का अनुभव कर सकें।
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]]>The post Mahakumbh Mela Budget – 1 दिन के लिए महाकुंभ यात्रा का बजट: जानें कितना होगा खर्च और कैसे करें बचत appeared first on Chandigarh News.
]]>Mahakumbh Mela Budget – महाकुंभ भारत का सबसे बड़ा धार्मिक मेला है, जिसमें लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं। यदि आप केवल एक दिन के लिए महाकुंभ यात्रा की योजना बना रहे हैं, तो यात्रा का बजट सही से बनाना बहुत जरूरी है, ताकि आप बिना किसी वित्तीय चिंता के यात्रा का आनंद ले सकें।
इस लेख में हम आपको महाकुंभ यात्रा के दौरान होने वाले खर्चों के बारे में जानकारी देंगे, ताकि आप अपनी यात्रा का बजट आसानी से तय कर सकें।
महाकुंभ यात्रा के बजट को बनाते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें:
आप किस माध्यम से महाकुंभ जाएंगे? ट्रेन, बस या हवाई जहाज, हर एक का खर्च अलग-अलग होगा। यदि आप ट्रेन या बस से यात्रा कर रहे हैं तो यह सस्ता होगा, जबकि हवाई यात्रा महंगी हो सकती है।
आप कहां ठहरेंगे? होटल, धर्मशाला या शिविर में ठहरने का खर्च अलग-अलग होगा। शिविर या धर्मशाला में ठहरने से खर्च कम हो सकता है।
आप कहां खाना खाएंगे? लंगर, होटल या ढाबे, हर एक का खर्च अलग-अलग होगा। लंगर में मुफ्त खाना मिलता है, जबकि होटल या ढाबे में खाने का खर्च अधिक हो सकता है।
आप किस मंदिर में दर्शन करेंगे और क्या आप विशेष पूजा करवाएंगे, इसके लिए भी अलग से बजट रखना होगा।
महाकुंभ यात्रा का बजट कई कारकों पर निर्भर करता है, जैसे कि यात्रा का स्थान, यात्रा का समय और आपकी जीवनशैली। लेकिन सामान्यत: 1 दिन की यात्रा के लिए आपको निम्नलिखित खर्चों का सामना करना पड़ सकता है:
कुल मिलाकर, एक दिन के लिए महाकुंभ यात्रा पर जाने के लिए आपको ₹1000 से ₹3500 तक का बजट बनाकर चलना चाहिए।
आप सार्वजनिक परिवहन का उपयोग कर सकते हैं जो सस्ता होता है।
आप धर्मशाला या शिविर में रह सकते हैं, जो कम खर्चीला होता है।
आप लंगर का लाभ उठा सकते हैं या पैक्ड लंच ले सकते हैं।
आप मुफ्त में होने वाले दर्शनों पर जा सकते हैं।
एटीएम की सुविधा हर जगह उपलब्ध नहीं होती है, इसलिए नकद लेकर जाएं।
महाकुंभ यात्रा एक पवित्र और अद्भुत अनुभव है। यदि आप पहले से योजना बनाकर और बजट का ध्यान रखते हुए यात्रा करेंगे, तो आप इस यात्रा का पूरा आनंद ले सकते हैं।
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]]>Mahakumbh Mela Rules – महाकुंभ भारत का सबसे बड़ा और पवित्र धार्मिक मेला है, जिसमें हर साल लाखों श्रद्धालु हिस्सा लेते हैं। इस बार महाकुंभ का आयोजन 13 जनवरी से 26 फरवरी 2025 तक उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में हो रहा है।
श्रद्धालुओं की सुरक्षा और सुविधा के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने कुछ महत्वपूर्ण नियम बनाए हैं जिन्हें पालन करना सभी श्रद्धालुओं के लिए अनिवार्य है। यदि आप भी महाकुंभ में भाग लेने जा रहे हैं, तो इन नियमों को जानना और उनका पालन करना जरूरी है।
महाकुंभ में प्रवेश करने के लिए ई-पास लेना अनिवार्य है। श्रद्धालु इसे ऑनलाइन माध्यम से प्राप्त कर सकते हैं।
श्रद्धालुओं को निर्धारित और सुरक्षित क्षेत्रों में ही स्नान करना होगा। यह सुनिश्चित करने के लिए कि स्नान सुरक्षित और व्यवस्थित तरीके से हो सके।
मेला क्षेत्र में प्लास्टिक के थैले, बोतलें और अन्य प्लास्टिक सामग्री का उपयोग पूरी तरह से प्रतिबंधित है। इसका उद्देश्य पर्यावरण को सुरक्षित रखना और प्रदूषण को कम करना है।
खुले में शौच करना पूरी तरह से प्रतिबंधित है। श्रद्धालुओं को मेला क्षेत्र में बनाए गए शौचालयों का ही उपयोग करना होगा।
मेला क्षेत्र में ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए विशेष नियम बनाए गए हैं। इससे मेला क्षेत्र में शांति बनी रहती है और अन्य श्रद्धालुओं को कोई असुविधा नहीं होती।
मेला क्षेत्र में आग बुझाने के उपकरणों का सही तरीके से उपयोग करने के लिए नियम बनाए गए हैं। यह सुरक्षा को सुनिश्चित करता है और किसी भी आकस्मिक आगजनी से बचाव करता है।
मेले में भीड़भाड़ वाले स्थानों पर धूम्रपान, मद्यपान और अन्य हानिकारक गतिविधियों पर भी प्रतिबंध है। यह नियम मेले की पवित्रता बनाए रखने और श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए हैं।
महाकुंभ मेला एक अद्भुत और पवित्र धार्मिक अनुभव होता है। इन नियमों का पालन करके आप न केवल अपनी सुरक्षा सुनिश्चित कर सकते हैं, बल्कि अन्य श्रद्धालुओं की सुरक्षा में भी मदद कर सकते हैं।
नियमों का पालन करना मेले को सही तरीके से और सुरक्षित रूप से आयोजित करने में मदद करता है, जिससे सभी को एक अच्छे अनुभव का लाभ मिलता है।
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]]>The post Maha Kumbh Mahila Naga Sadhu Story – कैसे बनती हैं महिला नागा साधु? appeared first on Chandigarh News.
]]>Maha Kumbh Mahila Naga Sadhu Story – महाकुंभ में महिला नागा साधुओं को लेकर हमेशा एक विशेष उत्सुकता बनी रहती है। यह जानना रोचक है कि कोई महिला नागा साधु कैसे बनती है और उनका जीवन कैसा होता है।
आमतौर पर कुंभ या महाकुंभ में महिला नागा साधु दिखाई नहीं देती थीं, लेकिन हाल के वर्षों में विशेष रूप से प्रयागराज महाकुंभ में महिलाओं के अखाड़े का गठन हुआ है और उनकी उपस्थिति बढ़ी है। इस बार महिला नागा साधु अपने स्वयं के शिविरों के साथ दिखाई देंगी।
महिला नागा साधु बनने की प्रक्रिया अत्यंत कठिन और दीक्षा आधारित होती है। यह प्रक्रिया कुछ इस प्रकार होती है:
महिला नागा संन्यासिन बनने के लिए उसे जूना अखाड़े के किसी महिला या पुरुष संत से दीक्षा लेनी होती है।
संन्यास लेने से पहले, महिला के परिवार और उसके पिछले जन्म की जांच की जाती है, यह सुनिश्चित किया जाता है कि उसने संसार से मोह त्याग दिया है।
महिला को 6 माह तक ब्रह्मचर्य और यम-नियम का पालन करना होता है, जिससे आचार्य संतुष्ट होते हैं और दीक्षा दी जाती है।
महिला अपने सांसारिक वस्त्र उतारकर पीला वस्त्र धारण करती है।
फिर वह मुंडन कराती है और अपना पिंडदान स्वयं करती है। इसके बाद उसे नदी में स्नान करने के लिए भेजा जाता है।
महिला को 6 से 12 वर्षों तक ध्यान और तपस्या करनी होती है।
जब महिला सभी तप और परीक्षाओं को सफलतापूर्वक पार कर लेती है, तो उसे ‘माता’ की उपाधि दी जाती है।
इस उपाधि के बाद, वह महिला संन्यासी अखाड़े की मान्य सदस्य बन जाती है और सभी साधु-संत उसे ‘माता’ कहकर संबोधित करते हैं।
महिला नागा साधुओं का जीवन अनुशासन और तपस्या से भरा होता है। हालांकि, वे सार्वजनिक रूप से निर्वस्त्र नहीं होतीं, जैसे पुरुष नागा साधु होते हैं। उनके जीवन की विशेषताएं इस प्रकार हैं:
वस्त्र: महिला नागा साधु को एक ही वस्त्र पहनने की अनुमति होती है, जिसे ‘गंती’ कहा जाता है। यह कपड़ा भी सिला हुआ नहीं होता है।
स्नान: कुंभ में स्नान करते समय महिला साधु नग्न स्नान नहीं करतीं। वे गेरुए वस्त्र में ही स्नान करती हैं।
धार्मिक क्रियाएँ: महिला नागा साधु दिनभर भगवान का जाप करती हैं। वे ब्रह्ममुहुर्त में उठकर शिवजी का जाप करती हैं और शाम को दत्तात्रेय भगवान की पूजा करती हैं। दोपहर में भोजन करने के बाद पुनः शिवजी का जाप करती हैं और फिर शयन करती हैं।
अखाड़े में सम्मान: महिला संन्यासिनों को अखाड़े में पूरा सम्मान मिलता है। उनका माई बाड़ा नामक शिविर जूना अखाड़े के पास होता है, जहां वे विशेष ध्यान और तपस्या करती हैं।
जूना अखाड़े में महिलाएं नागा और मंडलेश्वर पद प्राप्त करती हैं। 2013 में, जूना अखाड़े ने ‘माई बाड़ा’ को दशनाम संन्यासिनी अखाड़ा के रूप में स्थापित किया था।
इस अखाड़े की महिला साधुओं को ‘माई’, ‘अवधूतानी’ या ‘नागिन’ कहा जाता है।
‘माई’ पद पर चुनी गई महिलाएं कुंभ के शाही स्नान के दौरान पालकी में चलती हैं और उनके पास अखाड़े का ध्वज, डंका और दाना रखने की छूट होती है।
जूना अखाड़े में बड़ी संख्या में विदेशी महिलाएं भी हैं, खासकर यूरोप और नेपाल से। नेपाल में ऊंची जाति की विधवाओं के लिए पुनर्विवाह की अनुमति नहीं होती, इसलिए वे अपने घर लौटने की बजाय साधु बनकर नए जीवन की शुरुआत करती हैं।
इन महिलाओं का नागा साधु बनने का आकर्षण अधिक है, भले ही इसके लिए कठोर तपस्या और तप का पालन करना होता है।
महिला नागा साधु बनने का मार्ग कठिन और तपस्वी है, लेकिन इसके द्वारा महिलाएं न केवल धार्मिक समर्पण की एक नई परिभाषा स्थापित करती हैं, बल्कि समाज में अपनी पहचान भी बनाती हैं। कुंभ जैसे महापर्व पर इनका विशेष स्थान होता है और उनके जीवन का यह सफर एक अद्वितीय आध्यात्मिक यात्रा के रूप में देखा जाता है।
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]]>The post Kalpvas in Mahakumbh – महाकुंभ में कल्पवास क्या है? जानें महत्व, लाभ और नियम के बारे में appeared first on Chandigarh News.
]]>Kalpvas in Mahakumbh कल्पवास महाकुंभ में एक विशेष तपस्या और धार्मिक व्रत है, जिसे आत्मशुद्धि, मोक्ष प्राप्ति और ईश्वर से जुड़ाव के लिए किया जाता है। कुंभ मेले के दौरान लाखों श्रद्धालु इस कठिन तपस्या में भाग लेते हैं, जिसमें वे एक महीने तक संगम के तट पर रहते हुए वेदों का अध्ययन, ध्यान और पूजा करते हैं।
धार्मिक मान्यतानुसार, कल्पवास का शाब्दिक अर्थ है ‘कल्प के लिए व्रत रखना’, और कल्प ब्रह्मा जी के एक दिन के बराबर माना जाता है। हालांकि, कुंभ मेले में कल्पवास एक महीने के लिए किया जाता है। यह तपस्या व्यक्ति को पूरी तरह से शारीरिक और मानसिक रूप से शुद्ध करने के लिए होती है, जिसमें व्यक्ति विशेष रूप से अपने आहार, नींद और अन्य जीवनशैली पर नियंत्रण रखता है।
कल्पवास एक कठिन तपस्या है, लेकिन इसका महत्व बहुत गहरा है। कुंभ मेले के दौरान कल्पवास करने से आत्मशुद्धि होती है और मोक्ष की प्राप्ति का रास्ता खुलता है। माना जाता है कि कुंभ मेले में किया गया कल्पवास लाखों गुना फल देता है और व्यक्ति को जीवन के सभी दोषों से मुक्त कर देता है।
शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य: कल्पवास करने से शरीर और मन दोनों स्वस्थ रहते हैं। यह तपस्या शारीरिक थकावट को कम करने के साथ मानसिक शांति और संतुलन को बढ़ाती है।
आत्मविश्वास में वृद्धि: यह व्रत आत्मविश्वास बढ़ाने में मदद करता है, क्योंकि व्यक्ति अपने इच्छाशक्ति और अनुशासन में सुधार करता है।
धैर्य और संयम: कल्पवास के दौरान व्यक्ति को कठिन परिस्थितियों का सामना करने और संयम रखने की कला सीखने को मिलती है।
आध्यात्मिक विकास: इस तपस्या के माध्यम से व्यक्ति का आध्यात्मिक विकास होता है, जिससे उसे ईश्वर का साक्षात्कार और आत्मज्ञान प्राप्त होता है।
भोजन: कल्पवास के दौरान व्यक्ति केवल सात्विक भोजन करता है, जिसमें फल, सब्जियां और दूध शामिल होते हैं।
निद्रा: कल्पवास के दौरान व्यक्ति कम से कम सोता है, ताकि अधिक समय ध्यान और पूजा में लग सके।
वस्त्र: इस दौरान सफेद या पीले रंग के वस्त्र पहने जाते हैं, जो शुद्धता और आध्यात्मिकता का प्रतीक होते हैं।
नियमित स्नान: हर दिन पवित्र नदी में स्नान करना अनिवार्य होता है, जिससे शारीरिक और मानसिक शुद्धता बनी रहती है।
मंत्र जाप: कल्पवास के दौरान विभिन्न धार्मिक मंत्रों का जाप किया जाता है, जो व्यक्ति की आध्यात्मिक यात्रा को प्रगति की दिशा में अग्रसर करते हैं।
धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन: इस समय में धार्मिक ग्रंथों और शास्त्रों का अध्ययन करना आवश्यक होता है।
ब्रह्मचर्य पालन: कल्पवास के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करना जरूरी होता है, जिससे मानसिक और शारीरिक शुद्धता बनी रहती है।
धार्मिक महत्व: हिंदू धर्म में कल्पवास को मोक्ष प्राप्ति का एक प्रभावी साधन माना जाता है। इसे करने से सभी पाप धुल जाते हैं और व्यक्ति को मोक्ष मिलता है।
आत्मशुद्धि: कुंभ में कल्पवास करते समय व्यक्ति आत्मशुद्धि की प्रक्रिया से गुजरता है, जिससे वह अपने जीवन की दिशा को सही कर सकता है।
ईश्वर से जुड़ाव: यह तपस्या व्यक्ति को ईश्वर के करीब लाती है और उसकी आध्यात्मिक स्थिति को ऊंचा करती है।
कल्पवास महाकुंभ में एक अत्यधिक महत्वपूर्ण और कठिन तपस्या है, जिसका उद्देश्य न केवल शारीरिक और मानसिक शुद्धि है, बल्कि यह व्यक्ति को आध्यात्मिक उन्नति की ओर भी अग्रसर करता है। यह तपस्या करने से आत्मज्ञान, मोक्ष और ईश्वर के साथ एक गहरा संबंध स्थापित होता है, जो जीवन में शांति और संतुष्टि लाता है।
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]]>The post Kumbh Mela Mythological Story – चंद्रमा की इस गलती की वजह से लगता है महाकुंभ, जानिए पौराणिक कथा appeared first on Chandigarh News.
]]>Kumbh Mela Mythological Story – महाकुंभ, भारत का सबसे बड़ा और पवित्र धार्मिक आयोजन, हर 12 साल में एक बार आयोजित होता है। इस बार यह आयोजन प्रयागराज में त्रिवेणी संगम पर हो रहा है, जहां लाखों श्रद्धालु गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम में पवित्र डुबकी लगाकर पुण्य की प्राप्ति करेंगे।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस महाकुंभ के आयोजन का श्रेय चंद्रमा को जाता है? और यह श्रेय उन्हें एक गलती की वजह से मिला, जिसे जानकर आप चौंक सकते हैं। आइए जानते हैं चंद्रमा की गलती के कारण महाकुंभ क्यों लगता है, इसके पीछे की पौराणिक कथा।
महाकुंभ मेले की उत्पत्ति समुद्र मंथन से जुड़ी है, जिसे देवताओं और असुरों ने मिलकर किया था। समुद्र मंथन से अमृत (अमृत कलश) निकला था, जो अमरता का प्रतीक माना जाता है।
इस अमृत को पाने के लिए देवताओं और असुरों के बीच एक भयंकर युद्ध हुआ था। देवताओं और असुरों दोनों को यह अमृत प्राप्त करने के लिए लंबी संघर्ष करना पड़ा।
इस युद्ध में अमृत कलश को लाने की जिम्मेदारी सूर्य, चंद्रमा, गुरु और शनि को दी गई थी। लेकिन चंद्रमा ने अमृत कलश को पकड़ते हुए एक गलती की। जब वह अमृत कलश को संभाल रहे थे, तो उन्होंने थोड़ी सी अमृत पी ली। और इसी दौरान चंद्रमा से अमृत की कुछ बूंदें गिर गईं।
चंद्रमा से गिरी अमृत की बूंदें चार स्थानों पर गिरीं: प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन। यह चार स्थान पवित्र माने गए, क्योंकि जहां-जहां अमृत की बूंदें गिरीं, वहां पवित्र नदियां बहने लगीं और वे स्थान विशेष रूप से पवित्र हो गए। इन स्थानों पर स्नान करने से सभी पापों का नाश होता है और व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
इन्हीं चार स्थानों पर कुंभ मेला आयोजित किया जाता है। कुंभ मेला न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी एक बड़ा आयोजन है।
मान्यता है कि कुंभ मेले के दौरान इन स्थानों पर स्नान करने से व्यक्ति को अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। यही कारण है कि महाकुंभ का आयोजन इन चार स्थानों पर हर 12 वर्ष में एक बार किया जाता है।
महाकुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, सभ्यता और समाज की एकता का प्रतीक भी है। यह मेला लाखों लोगों को एक साथ लाता है, जहां विभिन्न धर्मों, जातियों और समुदायों के लोग एकत्रित होते हैं। यहां सामाजिक एकता और भारतीय संस्कृति का प्रकट रूप देखा जा सकता है।
इस प्रकार, चंद्रमा की वह गलती जो अमृत पीने के दौरान हुई, वह आज हमें महाकुंभ के रूप में एक साथ लाकर धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से जोड़ती है। महाकुंभ का आयोजन सिर्फ धार्मिक महत्व नहीं, बल्कि यह भारतीय सभ्यता के गौरव और वैभव का प्रतीक बन चुका है।
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]]>The post Chinese Connection of Kumbh Mela – कुंभ मेले का क्या है चीन कनेक्शन? जानिए कुंभ का रोचक इतिहास appeared first on Chandigarh News.
]]>Chinese Connection of Kumbh Mela महाकुंभ एक ऐसा भव्य और ऐतिहासिक धार्मिक आयोजन है, जो न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है। इस मेले में लाखों श्रद्धालु गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर स्नान करने के लिए इकट्ठा होते हैं।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस प्राचीन और विशाल आयोजन का चीन से भी एक गहरा संबंध है? यह जानकर आपको आश्चर्य हो सकता है, लेकिन यह पूरी तरह से सच है। आइए जानें कुंभ मेले का चीन से क्या कनेक्शन है और इसके ऐतिहासिक महत्व को।
प्राचीन काल में, चीनी बौद्ध भिक्षु और यात्री ह्वेनसांग (जिसे ज़ुआनज़ैंग भी कहा जाता है) ने 7वीं शताब्दी में भारत की यात्रा की थी। वह एक प्रसिद्ध विद्वान थे, जिन्होंने भारत में कई वर्षों तक बौद्ध धर्म का अध्ययन किया और विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक स्थलों का दौरा किया। उनके यात्रा वृत्तांतों से हमे उस समय के भारत और धार्मिक आयोजनों के बारे में कई महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है।
ह्वेनसांग ने अपने यात्रा वृत्तांत में विशेष रूप से प्रयाग (वर्तमान प्रयागराज) में आयोजित होने वाले कुंभ मेले का उल्लेख किया है। उनके अनुसार, इस मेले में लाखों लोग एकत्रित होते थे, और यह आयोजन न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण था, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का भी केंद्र बनता था। ह्वेनसांग ने कुंभ मेला में भाग लेने वाले श्रद्धालुओं के धर्मनिष्ठा और अनुष्ठानों के बारे में भी लिखा है।
ह्वेनसांग ने अपने वृत्तांत में कुंभ मेले के भव्य दृश्यों का वर्णन किया है। उन्होंने बताया कि कैसे लाखों लोग गंगा नदी में स्नान करने के लिए एकत्र होते हैं, जिससे उन्हें पवित्रता प्राप्त होती है।
इसके साथ ही, उन्होंने मेले के दौरान होने वाले धार्मिक अनुष्ठानों, साधु-संतों के प्रवचनों और सांस्कृतिक गतिविधियों का भी विस्तार से वर्णन किया। ह्वेनसांग ने यह भी उल्लेख किया कि यह मेला न केवल भारत के अंदर बल्कि विदेशों में भी प्रसिद्ध था।
ह्वेनसांग के वृत्तांत से यह भी साफ होता है कि कुंभ मेला उस समय भी भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का एक अभिन्न हिस्सा था। यह आयोजन न केवल भारतीयों के लिए, बल्कि विदेशी आगंतुकों के लिए भी एक आकर्षण का केंद्र था।
ह्वेनसांग के माध्यम से चीन को भारतीय धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं के बारे में जानकारी मिली, और यह संप्रेषण भारत और चीन के बीच एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक संपर्क का उदाहरण बना।
ह्वेनसांग के वृत्तांत से यह स्पष्ट होता है कि कुंभ मेला न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक धरोहर का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
इस मेले में विभिन्न जातियों और धर्मों के लोग एक साथ आते हैं और सांस्कृतिक आदान-प्रदान करते हैं। यह आयोजन उस समय से लेकर आज तक भारत के सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक बना हुआ है।
ह्वेनसांग के माध्यम से चीन को भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर के बारे में जानकारी मिली। यह यात्रा न केवल बौद्ध धर्म के प्रसार में सहायक रही, बल्कि भारत और चीन के बीच सांस्कृतिक संबंधों को भी मजबूत किया। आज भी महाकुंभ मेला चीन सहित अन्य देशों से आए श्रद्धालुओं के लिए एक आकर्षण का केंद्र है।
इस प्रकार, कुंभ मेला न केवल भारतीय संस्कृति का प्रतीक है, बल्कि इसका ऐतिहासिक कनेक्शन चीन के साथ यह दर्शाता है कि धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों के माध्यम से विभिन्न देशों के बीच आदान-प्रदान और समझ बनती है।
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]]>The post Ban on Kumbh Mela Story – 1942 में प्रयाग पर बम गिरने के डर से अंग्रेजों ने क्यों लगाया था प्रतिबंध, जानिए इतिहास appeared first on Chandigarh News.
]]>Ban on Kumbh Mela Story – भारत का महाकुंभ एक ऐसा धार्मिक आयोजन है, जो प्राचीन काल से चला आ रहा है। यह आयोजन लाखों श्रद्धालुओं के लिए आस्था और धार्मिक भावना का केंद्र बनता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि 1942 में अंग्रेजों ने इस महान धार्मिक आयोजन पर प्रतिबंध लगा दिया था?
इसके पीछे कई राजनीतिक और सैन्य कारण थे, जो उस समय की वैश्विक और राष्ट्रीय परिस्थितियों से जुड़े थे। आइए जानते हैं उस ऐतिहासिक घटना का कारण और इसके पीछे की कहानी।
1942 में जब दुनिया द्वितीय विश्व युद्ध की चपेट में थी, तब भारत भी ब्रिटिश साम्राज्य के तहत था। जापान ने दक्षिण-पूर्व एशिया में अपनी आक्रमणकारी योजनाओं को गति दी थी और भारत पर भी आक्रमण करने की योजना बनाई थी।
अंग्रेजों को यह डर था कि यदि कुंभ मेला आयोजित होता है, तो वहां लाखों लोग एकत्रित हो सकते हैं, जिनमें से कुछ पर जापान बमबारी कर सकता है। अंग्रेजी शासन को यह आशंका थी कि इस विशाल सभा को सुरक्षित रखना बहुत मुश्किल हो सकता है और इससे युद्ध के दौरान सुरक्षा के मुद्दे और गंभीर हो सकते थे।
अंग्रेजों के डर का दूसरा कारण यह था कि स्वतंत्रता सेनानी कुंभ मेले को एक बड़े पैमाने पर जनसंगठनों और आंदोलनों के लिए अवसर मानते थे। वे इस आयोजन का उपयोग भारतीय जनता को एकजुट करने और अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम के लिए प्रेरित करने के रूप में करना चाहते थे।
ऐसे में अंग्रेजों को यह डर था कि कुंभ मेला स्वतंत्रता संग्रामियों के लिए एक मंच बन सकता है, जहां वे एकत्र होकर विरोध प्रदर्शन और विद्रोह की योजना बना सकते हैं।
इन दोनों कारणों से अंग्रेजों ने 1942 में प्रयाग कुंभ मेले पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया। उन्होंने तर्क दिया कि इतने बड़े पैमाने पर लोगों का एकत्र होना कानून और व्यवस्था की समस्या उत्पन्न कर सकता है और जापानी हमले का खतरा भी बढ़ सकता है। इसके अलावा, यदि स्वतंत्रता सेनानी इस मौके का फायदा उठाते, तो यह ब्रिटिश शासन के लिए और भी बड़ी चुनौती बन सकता था।
कुंभ मेले पर प्रतिबंध लगाने से लाखों श्रद्धालु निराश हुए। यह आयोजन उनके लिए धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता था। श्रद्धालुओं ने इस फैसले का विरोध किया और इंग्लैंड के खिलाफ आक्रोश व्यक्त किया, लेकिन अंग्रेजों ने अपना फैसला नहीं बदला और मेला रद्द कर दिया।
इस तरह, 1942 में कुंभ मेला पर लगाए गए प्रतिबंध ने न केवल धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाई, बल्कि यह उस समय के राजनीतिक माहौल और स्वतंत्रता संग्राम से भी गहरे रूप से जुड़ा था।
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]]>Aghori aur Mahakumbh Mela – अघोरी साधु हिंदू धर्म में एक रहस्यमयी और रहस्यपूर्ण संप्रदाय के रूप में जाने जाते हैं। इन साधुओं का जीवन एक तपस्वी यात्रा है, जिसमें शारीरिक और मानसिक रूप से कठोरता से गुजरना पड़ता है।
अघोरी बनने के लिए शिष्य को तीन प्रमुख दीक्षाओं से गुजरना पड़ता है। हर दीक्षा एक नई चुनौती होती है और इनका उद्देश्य शिष्य को मानसिक, शारीरिक, और आध्यात्मिक दृष्टि से पूरी तरह से तैयार करना है।
आइए जानें उन तीन महत्वपूर्ण दीक्षाओं के बारे में, जिनके बाद ही कोई व्यक्ति अघोरी बन सकता है:
हरित दीक्षा अघोरी बनने की पहली प्रक्रिया है। इस दीक्षा में शिष्य को गुरु मंत्र दिया जाता है। यह मंत्र बहुत ही शक्तिशाली होता है और शिष्य को इसे नियमित रूप से जाप करना होता है। मंत्र का जाप शिष्य की मानसिक शक्ति को मजबूत करता है और वह आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त करता है।
इस दीक्षा से शिष्य के भीतर एकाग्रता और ध्यान की क्षमता विकसित होती है, जो आगे की कठोर साधना के लिए आवश्यक है। इस दीक्षा के बाद शिष्य को गहन साधना की दिशा में मार्गदर्शन मिलता है।
शिरीन दीक्षा दूसरी महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जिसमें शिष्य को तंत्र साधना के गहरे रहस्यों से अवगत कराया जाता है। इस दीक्षा में शिष्य को श्मशान में रहकर तपस्या करनी होती है।
श्मशान में रहते हुए शिष्य को न केवल भौतिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, बल्कि मानसिक रूप से भी उसे मजबूती से लड़ने की क्षमता प्राप्त होती है।
श्मशान की परिस्थितियों में सर्दी, गर्मी और बारिश जैसी कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। इस दीक्षा के दौरान शिष्य को आत्म-नियंत्रण और मानसिक स्थिरता की आवश्यकता होती है।
रंभत दीक्षा अघोरी बनने की सबसे कठिन और अंतिम दीक्षा है। इस दीक्षा में शिष्य को अपनी पूरी जिंदगी और मृत्यु का अधिकार गुरु को सौंपना होता है। यह दीक्षा केवल उन साधकों को दी जाती है, जिन्होंने पहले दो दीक्षाओं में सफलता प्राप्त की है और जिन्होंने गुरु पर पूर्ण विश्वास और समर्पण दर्शाया है।
इस दीक्षा का उद्देश्य शिष्य को पूरी तरह से गुरु के आदेशों का पालन करने योग्य बनाना है। शिष्य को किसी भी प्रश्न या संकोच के बिना गुरु के आदेशों का पालन करना होता है, चाहे वह जीवन या मृत्यु से संबंधित हो।
अघोरी बनने की प्रक्रिया एक लंबी और कठिन यात्रा है, जिसमें शिष्य को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से तैयार किया जाता है। इन तीन कठिन दीक्षाओं के बाद ही कोई व्यक्ति अघोरी बनने के योग्य हो सकता है।
अघोरियों का जीवन उनके अनुशासन, तपस्या और समर्पण का प्रतीक होता है, जो उन्हें अन्य साधुओं से विशिष्ट बनाता है। उनकी दुनिया गुप्त और रहस्यमयी है, और जनमानस में उनकी जिज्ञासा सदैव बनी रहती है।
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